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नारी शक्ति वंदन अथार्त देश में परिवर्तन की चाह – डॉ अमित मिश्रा

मगध हेडलाइंस: विषेश। कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं होता, जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों ‘ दुष्यंत जी की इन पंक्तियों में वहीं जोश नजर आता है जो आज 2023 में वर्तमान सरकार में हैं। हालांकि ताली एक हाथ से नहीं बजती दोनों तर्जनियों का मिलना जरुरी होता हैं। आज देश एक स्वर में हैं। नारी शक्ति वंदन अधिनियम का दोनों सदनों में समर्थन मिलना इस बात का जीवन्त उदाहरण हैं। वैसे तो भारत संस्कृति और संस्कारों की जननी हैं जहां सजीव और निर्जीव दोनों को सम्मान देना हर भारतीय के संस्कारों में झलकता हैं। तभी तो कहा गया कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ बीते दिनों देश की संसद ने इसे प्रामाणिक तथ्यों के साथ विश्व पटल पर ‘नारी शक्ति वंदन’ के रूप में सर्वसम्मति से पारित कर एक कृतिमान स्थापित कर दिया। वाकई वर्तमान सरकार ने इसके लिए जो अविश्वसनीय कदम उठाया हैं वह अपने आप में एक नज़ीर हैं। किसी अधिनियम या बिल को दोनों सदनों का समर्थन मिलना इस बात का संकेत हैं कि देश की आवाम परिवर्तन चाहती हैं हालांकि लगभग तीन दशक (29 साल ) पूर्व तब की सरकार ने कोशिश की थी लेकिन तब इस नियम को स्वीकारना आसान नहीं हुआ था। अब इस अधिनियम पर एक साथ सहमति बनाना इस बात का भी संकेत हैं कि देशवासियों की सोच बदली हैं। महिलाओं को चार दीवारी में कैद करना देश हीत में नहीं। इस अधिनियम के बाद अब महिलाओं की पहुुंच चुल्हा – चौका तक ही सीमित न होकर देशहीत के निर्णायक के रूप में होगी। चूंकि इतिहास इस बात की गवाही देता आया हैं कि महिलायें प्रबंधन कला में पुरुषों से कतई कमतर नहीं हैं। भारत में पंचायती राज की शुरुवात 2 अक्टूबर 1959 हुई थी उसी वक़्त महिला सशक्तिकरण पर भी देशभर में चर्चा की गई थी लेकिन उसे पूर्णतः अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। जो अब संभव दिख रहा हैं, चुकीं 29 साल बाद महिला आरक्षण पर मास्टर स्टोक खेलना सियासत की एक चाल भी हैं और सियासत में पाशा खेलना कुशल राजनेता का पहचान हैं अतः इसमें हैरान भी नहीं होना हैं यह समय की मांग भी हैं। इस खेल का आनंद पूरा देश ले रहा हैं और इसकी सराहना भी हो रही हैं। विधेयक के पास होने से महिलाओं का सशक्त होना लाज़िमी भी हैं। क्योंकि इस अधिनियम से केवल केंद्र को ही नहीं राज्य को भी लाभ होने के आसार हैं क्योकि कभी कभी ऐसा भी देखा गया है कि मूलभूत समस्याओं पर सबका ध्यान संभव नहीं जाता वहीं महिलाएं उसे प्राथमिकता देती हैं जो विकास के लिए अति आवश्यक है। देश के सभी लोग जिन्होंने इस निर्णय में अपना सहयोग दिया वे बधाई के पात्र हैं। इस निर्णय से विकास की संभावना प्रबल है।

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