संघर्ष से उभरे निवर्तमान ज़िला पार्षद ने अपने पक्ष में जनता से वोट का की अपील
वर्ष 1995 में किया राजनीतिक जीवन की शुरूआत, संघर्ष हैं जिवन दूसरा नाम : यादवेन्दू
औरंगाबाद। सत्ता बदली, परिस्थितियां बदली पर नहीं बदली विचारधारा, दशकों से एक ही पार्टी में रहकर मजबूती के साथ खड़े रहे निवर्तमान ज़िला पार्षद शंकर यादवेन्दू, और राष्ट्रीय जनता दल के कठिन से कठिन परिस्थितियों में निभाई कई अहम भूमिका। आमतौर पर राजनीति में आने के बाद कई नेताओं की सोच सत्ताधारी दल में जाने की होती है या फिर व्यक्तिगत लाभ के लिए दल बदल लेना आजकल आम बात हो गई है।
लेनिन यादवेन्दू आज तक दूसरे दलों में नहीं गये। इसी सिलसिले बिहार पंचायत चुनाव के सातवें चरण के मतदान में शंकर यादवेन्दू अपने क्षेत्र का लगातर चुनावी दौरा कर रहे है। इस दौरान वे अपने द्वारा किये गये विकासात्मक कार्यो के आधार पर जन संपर्क के दौरान जनता से वोट मांग रहे है। जनता से एक बार फिर उन्होंने जीत का दावा करते हुये कहा है कि हमने विकास किया है और विकास करेगें। जनता के हक और अधिकार के लिए संघर्ष करते रहेगें।
अपने पांच साल के कार्यकाल में सरकार की विभिन्न योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम किया है और आगे भी यह कार्य जारी रखेंगे। बिना किसी भेद भाव के शोषित और दबे-कुचले लोगों की आवाज बनकर उन तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचाने का काम किया हूँ। कहा कि लोकतांतिक व्यवस्था में जनता मालिक होती है और जनप्रतिनिधि सेवक होता है। यदि जनता अपनी वोट की ताकत को पहचानें और मताधिकार का सही प्रयोग करें तो गांव समाज व देश में निश्चित रूप से आर्थिक, शैक्षणिक व समाजिक तौर पर क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता हैं।
आखिर क्या कारण हैं कि गांवों का विकास नहीं हुआ
उन्होंने कहा कि देश में विकास का रास्ता गांव से होकर जाता है। जब तक गांव का विकास नहीं होगा तब तक देश आर्थिक व सामरिक दृष्टिकोण से सशक्त नहीं होगा। आज तक गांव के विकास में धन बल और लठ बल सबसे बड़ा बाधक रहा हैं। जनता को क्षणिक सुख देकर उनके सर्वस्व को लूटा जाता रहा है। लेकिन अब ऐसा नहीं होने देगें। जनता जाग उठी है और हम उनके साथ अन्याय होने नहीं देंगे। हालांकि जनता जिसे चाहे उसकी जय और जिसकी चाहे पराजय का कारण बन सकती है।
कहा कि हम पांच साल की परंपराओं से बंधे हुए नहीं है की चुनावी वादा कर, जनता को अपनी बातों में लेकर बरगलाने का काम नहीं किया है। हमने हर जाति धर्म और संप्रदाय के लोगों को समान दृष्टिकोण से सुख-दुख में साथ खड़े रहे हैं। मेरी न तो बाप-दादाओं की पुश्तैनी जागीर रही है और न हम किसी विरासत के राजा रहे है। हमें जो भी उपलब्धियां प्राप्त हुई है वह जनता के आशीर्वाद का प्रतिफल है। इस आशीर्वाद के लिए हम हमेशा आकांक्षी बने रहेंगे। समाज सेवा से बड़ा पुण्य कार्य कोई नहीं है। इस मूल मंत्र को हर हाल में निभाने की पूरी कोशिश करता रहूंगा।
विचार : यादवेन्दू ने कहा कि गांव व समाज की दयनीय स्थिति देखकर मन बेहद कुंठा एवं वेदना का गहरा अहसास हुआ। तत्पश्चात लोगों की प्रेरणा और समाज की बिगड़ी दशा देख राजनिति को समाज सेवा का हथियार बनाया। इसी क्रम में हमारी राजनीतिक के पाठशाला की शुरुआत वर्ष 1995 में जानता दल की छात्र राजनीति से हुई हैं। जो उस समय की प्रमुख राजनीतिक संगठनों में से एक थी। उस समय एक साधारण परिवार से निकलकर अपने राजनीतिक संघर्ष की निरंतर गतिशीलता के बल पर पंचायत से लेकर प्रखंड और ज़िले की राजनीति मे अपनी जगह बनाई। हमने जीवन के हर संघर्ष में यह महसूस किया की जो हरता हैं वहीं जीतता हैं और तय किया की जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम हैं। एक सफल व्यक्ति वहीं है जो किसी अन्य के द्वारा अपने उपर फेंके गए ईंटों से एक मजबूत नींव बना ले। मेरे जीवन में भी कई परेशानियां एवं समस्याएं आयी लेकिन संघर्ष से कभी समझौता नहीं किया। जीवन के हर मोड़ पर ग़रीब-गुरबों एवं सेवा की और उनकी जरूरतों में खड़ा रहा।
कहा कि वर्ष 2011 में प्रथम बार ज़िला परिषद का चुनाव लड़े जिसमें काफ़ी कम अंतर वोट से चुनवा हार गये। लेकिन इसके बाद वर्ष 2016 के हुए पंचायत चुनाव में मुझे जनता का आर्शिवाद प्राप्त हुआ और 4400 मत से चुनाव जिते। इस बार फिर आप सबों के आशीर्वाद व प्रेरणा से चुनावी मैदान में आप सभी तमाम ज़िला परिषद क्षेत्र संख्या 11 की जनता से अपेक्षित सहयोग की कामना करता हूं। चुनाव जीतने के बाद उन तमाम योजनाओं को पूरा करूंगा जो जन हित में जरूरी हैं।
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