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गोह सीईओ के खिलाफ दलित पहुंचे डीएम कार्यालय, लगाई मदद की गुहार

मगध हेडलाइंस: औरंगाबाद। भारत में आजादी के बाद से दलितों के उत्थान के लिए समाज सुधारकों ने कई अभियान चलाए। मौजूदा समय में दलित शोषण के नाम पर नेता वोटों की राजनीति कर रहे हैं। दलितों के उत्थान के लिए जितनी बातें किताब और कानून में हैं उतना हक उन्हें जमीनी स्तर पर नहीं मिल पाया। आज भी दलित उत्पीड़न को लेकर संसद से लेकर सड़क तक नेता चिल्लाते हैं, पर जब बात हक देने की आती है तो कानून में नियमों को ऐसा घुमाया जाता है कि सारी कवायद धरी रह जाती है।

ऐसा ही एक मामला औरंगाबाद जिले के गोह प्रखंड के मुड़वा के दलित बस्ती की हैं। जहां दलितों का आरोप है कि दबंगों के प्रभाव में आकर अंचलाधिकारी द्वारा दुर्भावनावश 48 घंटे के अंदर सरकारी जमीन खाली करने का निर्देश दिया गया है जिस पर ये सभी वर्षो से मकान बना कर अपने परिवार के साथ रह रहे हैं।

इसी सिलसिले में उस गांव के राम जीवन दास, महेंद्र दास, शंकर पासवान, योगेश दास, लखन सिंह, रामजन्म दास, मुन्ना पासवान एवं रामरूप दास समेत कई अन्य लोग शनिवार को ज़िला मुख्यालय स्थित डीएम कार्यालय पहुंचे। हालांकि किसी कारण वश डीएम से दलितों की मुलाकात नहीं हो सकी। लेकिन इनका कहना हैं कि अंचलाधिकारी के अनुसार यदि हम सभी वह जमीन खाली नहीं करते हैं तो जबरन वहां से हमारी घर की सामग्रियां बाहर फेक दी जाएंगी और कार्रवाई कर जेल भेज दिया जाएगा। जबकि उक्त जमीन पर हम सभी 1975 से रह रहे हैं। हम सभी भूमिहीन है।

दलितों ने कहा कि केवल 14 दलित परिवार अंचलाधिकारी के दुर्भावनावश का शिकार हैं जिन्हें वह बेघर करना चाह रहे हैं। जबकि अन्य जाति के लोग भी उक्त जमीन पर घर बनाकर रह रहे हैं लेकिन उन कोई कार्रवाई क्यों नहीं? दलितों ने कहा कि जबकि सरकार तीन डिसमिल जमीन बंदोबस्त करने की बात कहती हैं। उन्होंने कहा यदि जिला प्रशासन तत्काल इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाती हैं जिससे हमारी घर सुरक्षित रहे हैं तो हम सभी आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

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मामले में जिला पार्षद प्रतिनिधि श्याम सुंदर ने कहा कि दलितों की मांग जायज़ है जिस जमीन पर ये सभी वर्षो से रह रहे हैं, उस पर इनका पीएम आवास योजना के तहत मकान बने हुए हैं लेकिन दबंगों के प्रभाव में आकर अंचलाधिकारी इनके साथ दुर्भावनावश उक्त जमीन को 48 घंटे के अंदर खाली करवाने का निर्देश दिया है। यह उचित नहीं है। ये सभी भूमिहीन है, ये परिवार को लेकर कहा जाएंगे। हम इसका विरोध करते हैं। जरूरत पड़ी तो आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

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