औरंगाबाद। कहा गया है ‘मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ क्योंकि आज भी कई ऐसे स्थान हैं जो मज़हबी सौहार्द का पैगाम देते हैं। ऐसा ही एक मजार औरंगाबाद ज़िला मुख्यालय के पठान टोली स्थित हजरत चुप शाह रहमतुल्लाह बाबा’ की मज़ार हैं। यहां हिंदू भी उतना ही आस्था के साथ मत्था टेकते हैं जितनी श्रद्धा के साथ मुस्लिम समुदाय। साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश देता इस मजार की कहानी भी दिलचस्प और अद्भुत है। यह प्रसिद्ध मजार दो धर्मों के आस्था का केंद्र हैं। हर रोज़ दोनों समुदाय के सैकड़ों महिलाएं-पुरुष दूर-दूर से यहां माथा टेकने आते हैं और अपनी फरियाद को सुनाते हैं।
कहा जाता है कि यहां पर आने वाले हर किसी की मुराद पूरी होती है। बाबा के मजार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता। मान्यता है कि जो बीमार यहां पहुंचते हैं वे ठीक होकर घर जाते हैं। इस बीच गौरतलब है कि चुप शाह बाबा के वास्तविकता के बारे में भी किसी को कुछ पता नहीं है और ना ही किसी को स्पष्ट जानकारी है कि वे कौन थे और कहा से यहां आये थे। कहा जाता है कि वे अल्लाह के वली थे और शैतानों को अपने वश में कर लेते हैं। करीब 42 वर्ष पहले यहां एक फरिश्ते के रूप में आए थे। तब इनके तन पर कोई वस्त्र नहीं था और आजीवन वस्त्र धारण नहीं किया। वे किसी से कुछ बोलते नहीं थे। इसलिए इनका नाम चुपशाह बाबा रखा गया और इसी जगह पर पर्दा फरमा गए।