मगध हेडलाइंस: औरंगाबाद। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day 2023) बीसवीं शताब्दी में उत्तरी अमेरिका और यूरोप में श्रमिक आंदोलनों की गतिविधियों से उभरा था। इसके पीछे का उद्देश्य लैंगिक समानता का संदेश, समान अधिकार, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार से आज़ादी दिलाना था। लेकिन भारत में महिलाओं के आजादी के लिए सफल प्रयास करने वाला एक अंग्रेज़ था जिसे आज भले ही देश की अधिकांश महिलाएं उनका नाम नहीं जानती हो। लेकिन उन्होंने भारतीय महिलाओं को कुप्रथाओं से आजादी दिलाई।
भारत में 1829 ई. से पहले महिलाओं के लिए मनुस्मृति के तहत एक ऐसा कानून था जिसमें पति की मौत के बाद उसकी जीती जागती पत्नी को भी जलने के लिए मजबूर किया जाए और इसे प्रथा का नाम देकर सही भी ठहराया जाता था जिसे सती प्रथा का नाम दिया गया। यह एक ऐसी कुप्रथा थी, जिसमें पति के निधन के बाद उसकी पत्नी को उसकी चिता में जीते जी झोंक दिया जाता था।
सती प्रथा से दिलाई थी महिलाओं को आजादी :
यह एक ऐसी प्रथा थी जिसमें पति की मौत होने पर पति की चिता के साथ ही उसकी विधवा को भी जला दिया जाता था। कई बार तो रजामंदी होती थी तो कभी-कभी उनको ऐसा करने के लिए जबरन मजबूर किया जाता था। पति की चिता के साथ जलने वाली महिला को सती कहा जाता था जिसका मतलब होता है पवित्र महिला। चिता पर जलने के दौरान उनकी चीखों और दर्द की पीड़ा को कोई भी ध्यान नहीं देता था।
सती प्रथा पर 1829 ई. में लगी थीं रोक :
भारत में व्याप्त इस कुप्रथा को खत्म करने का श्रेय अंग्रेज वायसराय विलियम बेंटिक को जाता है, जिन्होंने चार दिसंबर 1829 को सती प्रथा पर रोक लगा दी। लार्ड बेंटिक भारतीय समाज से तमाम बुराइयां खत्म करने के हिमायती थे और उन्होंने नवजात कन्या वध की कुप्रथा का भी अंत किया था। उन्होंने भारतीय सेना में प्रचलित कोड़े लगाने की प्रथा भी खत्म कर दी थी।
बेंटिक का कार्यकाल सुधारों का कार्यकाल :
लार्ड विलियम बेंटिक ने भारतीय समाज से तमाम बुराइयां खत्म करने के हिमायती थे। उन्होंने सती प्रथा के साथ-साथ कन्या वध की कुप्रथा का भी अंत किया था। इनका कार्यकाल सामाजिक, शैक्षणिक और वित्तीय सुधारों के कार्यकाल के रूप में जाना जाता है।