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फरोग-ए-उर्दू सेमिनार एवं मुशायरा का आयोजन, कई विद्वानों ने की शिरकत, उर्दू को बढ़ावा देने पर दिया गया जोर

मगध हेडलाइंस: औरंगाबाद। उर्दू भाषा की विकास के लिए उर्दू निदेशालय पटना के निर्देशानुसार जिला पदाधिकारी सौरभ जोरवाल के मार्गदर्शन में तथा उर्दू कोषांग की देखरेख में शनिवार को ज़िला स्तरीय उर्दू कार्यशाला एवं फरोग-ए-उर्दू सेमिनार व मुशायरा का आयोजन नगर भवन में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित कर अपर समाहर्ता आशीष कुमार सिन्हा, सदर अनुमंडल पदाधिकारी विजयंत एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष सह ज़िला उप निर्वाचन पदाधिकारी मोहम्मद गजाली समेत अन्य ने इसका संयुक्त रूप से उद्घाटन किया।

इसमें उर्दू भाषा की तरक्की पर वक्ताओं ने बल दिया। कार्यक्रम के दौरान उर्दू शिक्षाविदों व उर्दू कर्मियों को उर्दू को लिखने, पढ़ने व बोलने को लेकर कई बातों की जानकारी दी गई।

अपर समाहर्ता आशीष कुमार सिन्हा ने उर्दू की तरक्की पर बल देते हुए कहा कि उर्दू शिक्षकों को अपने दायित्वों का निवर्हन करना चाहिए। प्राइमरी वर्ग के बच्चों को जरूरी उर्दू की शिक्षा दें और लिखने-पढ़ने का अभ्यास कराएं। उन्होंने भविष्य में भी इस तरह के रचनात्मक कार्य करने पर बल दिया, ताकि उर्दू भाषी रचनाकारों को एक मंच मिले।

उन्होंने पत्रकारों से देवनागरी भाषा में उर्दू के प्रयोग पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि उर्दू एवं देवनागरी एक दूसरे की पूरक भाषा है। वैसे आमतौर पर हिंदी भाषा की बोलचाल में हम लोग उर्दू का भी इस्तेमाल करते हैं। ऐसा नहीं है कि उर्दू केवल उर्दू बोलने वालों तक ही सीमित है, बल्कि यह आम जनों की भी बोलचाल की भाषा है।

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उन्होंने कहा कि उर्दू हमारे देश की प्राचीनतम भाषा है जिसका प्रयोग हिंदी के साथ- साथ होता रहा है। देश के कई कविकारो एवं लेखकों ने हिंदी के साथ- साथ उर्दू का अपनी लेखन शैली में बखूबी इस्तेमाल किया है। ऐसे में चाहे प्रेमचंद हो या फिर फ़िराक़ गोरखपुरी हो यह हिंदी में भी लिखते थे और उर्दू में भी प्रखर थे। इनके अलावा चाहे मिर्जा गालिब हो या फिर उर्दू के कई अन्य कवि कार एवं लेखक कर हो सभी ने उर्दू विकास पर अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है। बिहार सरकार भी उर्दू भाषा के विकास को लेकर कटिबद्ध है। यह हमारा प्रदेश का द्वितीय भाषा है।

सदर अनुमंडल पदाधिकारी विजयंत ने उर्दू भाषा के महत्व और राष्ट्र निर्माण में इसके योगदान पर प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि कुछ लोग ये समझते है कि एक भाषा दूसरी भाषा का विरोध करता है और साथ लेकर नहीं चलता, लेकिन भारत वर्ष की भाषाएं एक दूसरे के बिना अधुरी है। एक भाषा में दूसरी भाषा के तत्व बहुत ही गहराई से समाहित है। उर्दू भाषा में हिंदी के शब्द, हिंदी भाषा में उर्दू के शब्द, बंगला में उर्दू के शब्द एवं संस्कृत के शब्द तो सभी भाषा में मिलते हैं।

इस प्रकार यह हमारी संस्कृति का वह गुलदस्ता है, जिसमें हर रंग के फूल है और गुलदस्ता में हर रंग के फुल का अपना महत्व है और वे सब मिलकर भारत वर्ष के गुलदस्ते को बहुत खुबसुरत बनाते हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी भाषा प्यार व मोहब्बत की होती है और लोगों के बीच भेद-भाव दूर करने का काम करती है।

उन्होंने कहा कि हमारे देश के एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जो 16 भाषाओं के जानकार थे। यह काबिलियत हम सबों में आए जिसको लेकर प्रयास करने की आवश्यकता है तभी हम देश और दुनिया के विभिन्न भाषाओं को जानेंगे। उन्होंने पत्रकारों से अपेक्षा की हैं कि देवनागरी भाषा के साथ – साथ उर्दू का भी उपयोग किया जाय। वहीं सरकार और प्रशासन उर्दू भाषा के फरोग के लिए कृत संकल्प है।

सर्वप्रथम ज़िला उप निर्वाचन पदाधिकारी मोहम्मद गजाली ने कार्यक्रम में आए सभी गणमान्य-शायरों, डेलीगेट्सों एवं छात्र-छात्राओं का इस्तकबाल करते हुए उर्दू भाषा के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने सरकार की भागीदारी एवं अपनी जिम्मेदारी को समझने हेतु किए जा रहे प्रयासों का संपूर्णता में उल्लेख किया।

उन्होंने स्वागत भाषण में उर्दू भाषा के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह एक मीठी जुबान है। अपनी उत्पत्ति से लेकर आज तक भारत की सभ्यता एवं संस्कृति को प्रभावित कर रही है। भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को सजाने-संवारने में इस भाषा ने काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस अवसर पर जदयू नेता मो. जुगनू समेत कई अन्य लोग उपस्थित थे।

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