-मो. फखरुद्दीन
टंडवा(औरंगाबाद) पढ़ने-लिखने की उम्र में ककरा चुनकर अपना और परिवार का पेट पालना कुछ बच्चों की मजबूरी बन गई है। बिखरे बाल फटे कपड़े पहनकर नंगे पांव दर्जनों बच्चों को हर रोज शहर की गलियों में कूड़ा-कचरा चुनते हुए देखे जाते है। यह मासूम बच्चें हर सुबह अपने पीठ पर बड़े आकार के बोरे टांग कर नालियों कूड़ा कचरा के ढेर से बिकने के लायक कचा चुनते हैं जिस उम्र में बच्चों के हाथ में किताबें और तन में स्कूल के इनफॉर्म होने चाहिए, उस उम्र में यह बच्चें स्कूल नहीं जाकर दिनभर कचरा बिनने में जुटे रहते हैं। जबकि राज्य सरकार स्कूल शिक्षा से वंचित बच्चों को विद्यालय से जोड़कर पढ़ाने लिखाने के लिए लाखों रुपए खर्च कर रही है लेकिन इन मासूम बच्चों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। सर्व शिक्षा अभियान, विद्यालय चले चलाए अभियान के तहत बच्चों का नामांकन स्कूलों में लिया जा रहा है। यह कहानी नहीं हकीकत है। औरंगाबाद ज़िले के नवीनगर प्रखंड स्थित टंडवा बाजार में आज भी दर्जनों ऐसे बच्चे हैं, जो दिन भर कबाड़ा चुनकर अपना और परिवार का पेट पाल रहे हैं। मजबूरी एवं गरीबी के कारण पढ़ने लिखने और खेलने कूदने की उम्र में बच्चे हाड़तोड़ मेहनत करने को विवश है। लेकिन इन बच्चों के हित के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया जा रहा है।