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सुखाड़ प्रभावित इलाकों का सहायक निदेशक ज़िला उद्यान ने किया दौरा, कहा – पारंपरिक खेती छोड़ बागवानी से जुड़े किसान , बागवानी से कम लागत में होती है मोटी कमाई 

– मिथिलेश कुमार –

मगध हेडलाइंस: अंबा (औरंगाबाद)। किसानों के सामने इस वक्त आर्थिक चुनौती सबसे बड़ी है। पारंपरिक खेती से उनको उतना मुनाफा नहीं मिल पा रहा है जितना उन्हें साल भर में उनकी मेहनत के अनुसार मिलना चाहिए। ऐसे में किसानों को पारंपरिक खेती छोड़कर बागवानी करनी चाहिए जिनसे उन्हें मोटा मुनाफा हो। यह बात सहायक निदेशक जिला उद्यान डॉ श्रीकांत ने कुटुंबा प्रखंड के सुखाड़ प्रभावित इलाकों की दौरा के दौरान कहीं। वे मंगलवार को प्रखंड क्षेत्र के परता, संडा एवं डुमरी पंचायत पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने सूखाग्रस्त क्षेत्र का मुआयना किया और किसानों की समस्या पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि किसान धान और गेहूं की खेती के अलावा अन्य फसलों की खेती में कम रूचि लेते हैं। धान की खेती के चलते दिनों दिन भूजल स्तर गिरता जा रहा है जिससे विभिन्न इलाका डार्क जोन में चले गए हैं। कुछ सालों में पानी की समस्या और भयंकर हो सकती है। इसलिए सरकार किसानों को बागवानी करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में पानी की किल्लत होने के कारण पारंपरिक खेती की सिंचाई में परेशानी होती है। जबकि बागवानी की सिंचाई में पानी कम लगता है। उन्होंने बताया कि सुखाग्रस्त क्षेत्र के किसानों को आगत सरसों का बीज मुफ्त में उपलब्ध कराया जाएगा। उन्होंने किसानों को केले की बागवानी एवं नकदी फसल लगाने की सुझाव दिया है। इस दौरान ग्राम परता के किसान रंजीत कुमार पांडेय, धनंजय कुमार पांडेय, पप्पू पांडेय, रामाधार पांडेय आदि किसानों ने बताया कि बारिश नहीं होने के कारण आहर-पोखर भी सूखे पड़े हैं। पानी के अभाव में धान के पौधे सूख रहे हैं। परता बांध के किनारे संग्रहित पानी से किसान पटवन कर रहे हैं परंतु जल्द ही पानी का यह स्टॉक समाप्त हो जाएगा। ऐसी स्थिति में किसानों ने विभागीय स्तर पर सिंचाई की वैकल्पिक व्यवस्था करने, बिजली बिल माफ करने तथा फसल के नुकसान का मुआवजे की मांग की है। किसानों ने कहा कि बटाने नदी किनारे डीप बोरिंग कर परता आहर में पानी का भंडारण करने से पटवन में सुविधा मिलेगी।

सूखाग्रस्त क्षेत्र के किसानों को मिले आर्थिक मदद – धान के सुखते हुए पौधों को देखकर किसान व्यथित हैं। परता गांव के किसान रंजीत पांडेय ने बताया कि किसानों ने धान की रोपनी में अपनी जमा पूंजी का बड़ा हिस्सा लगा दिया है। किसानों के साल भर के भोजन एवं आय कि आश इन फसलों से जुड़ी हुई है। बारिश के अभाव में धान के पौधे सुख रहे हैं जिससे किसानों को बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान होने की संभावना बनी हुई है। ऐसी स्थिति में किसानों ने प्रशासनिक स्तर पर आर्थिक मदद की मांग की है।

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