विविध

सामाजिक समानता हेतु जायज हैं समान नागरिक संहिता का क्रियान्वयन 

गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय सहायक प्राध्यापक डॉ अमित मिश्रा 

विषेश। भारत दुनिया का बड़ा लोकतंत्र हैं, जहां सभी नागरिकों को सुरक्षा मुहैया कराना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी के तहत आता हैं। इसी के साथ जब सवाल सुरक्षा का हो तो कोई भी सरकार इससे समझौता नहीं करेंगी और करनी भी नहीं चाहिए। भारत का संविधान भी इस बात का पुरजोर समर्थन करता है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षित रखना चयनित सरकार का कर्तव्य हैं जिसे सरकार को उसका पालन हर हाल में करना होता हैं। ऐसे में नागरिकों को भी सरकार को छूट देना चाहिए की वो बेहतर से बेहतर कदम नागरिक सम्मान के लिए उठाए।

समान नागरिक संहिता की बात करें तो देश के नागरिकों को समझना होगा की यह संहिता कोई नई चीज नहीं हैं।पहली बार यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में किया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि अपराधों, सुबूतों और ठेके जैसे मसलों पर समान कानून लागू होना चाहिए साथ ही हम सब पहले से धर्म निरपेक्षता की बात करते आ रहे हैं फिर आज इस कानून से परहेज़ कैसा। इसे धर्म निरपेक्षता का पर्यायवाची कहा जा सकता हैं जिसमें सामान अधिकार की ही बात को तार्किक तरीके से विस्तृत स्वरुप देने की कोशिश मात्र की जा रही है। आज़ादी से पहले भी देश के प्रमुख नेताओं ने सामान नागरिक संहिता की मागं की थी। तब पंडित जवाहर लाल नेहरू को १९३० में अन्य नेताओं के विरोघ का सामना करना पड़ा था।

चुकी तब देश आज जितना विकसित भी नहीं था और देश स्वयं अंग्रेजो के अधीन था। लेकिन आज परिस्थितियां बदल गई हैं। आज मिलकर हर समस्या का समाधान निकालना होगा। इसके लागू होने के बाद देश के हर नागरिक में व्याप्त कानूनी असंतोष को ख़त्म किया जा सकता हैं साथ ही न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आ सकती हैं। भारत में कई ऐसे मामले है जिसपर समयभाव के कारण कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे है क्योंकि उसके रास्ते में अन्य जातीय कानून बाधक बनते हैं। ऐसे में सामान नागरिक संहिता से एक ही कानून सबके लिए कारगर होगा तो न्यायिक प्रकिया में तेजी आयेगी। हालाँकि यह केवल केंद्र या केवल राज्य सरकार या किसी एक की परिधि के बाहर की चीज हैं। इसके लिए दोनों को एकमत के साथ मिलकर काम करना होगा।

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भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के अनुसार यह काम राज्य सरकार भी कर सकता हैं लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे हैं जैसे शादी,तलाक, सम्पति का अधिकार ये सब समवर्ती सूची के विषय हैं। ऐसे में यह संहिता किसी एक के प्रयास से फ़लीभूत होता मुमकिन नहीं लगता। दूसरी तरफ भारत के ही कई ऐसे राज्य हैं जहाँ के लोगों ने इसे सहर्ष स्वीकार किया हैं बाकि जगहों पर भी तैयारियाँ चल रही हैं। भारत के कई ऐसे पड़ोसी देश है जहां के सरकारों ने इस संहिता को अपने यहाां लागू किया हैं जैसे पकिस्तान, अमेरिका, आयरलैंड, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, तुर्की, मलेशिया आदि। उपरोक्त सभी देश सामान नागरिक संहिता का पालन करते हैं। दूसरी तरफ सामाजिक उत्थान में महिलाओं की भुमिका को पुरुषों से कम नहीं आंका जा सकता यह संहिता उनके अधिकारों को बल देगा साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद भी करेगा। तीन बार तलाक,तलाक,तलाक मात्र कहने से तलाक की संभावनाओं पर विराम लगेगा। जिससे मुस्लिम महिलायें अत्यधिक सबल और सशक्त होंगी। गौरतलब हैं कि इस सामान नागरिक संहिता से सामाजिक समानता विकसित कर सामाजिक दूरियां पाटी जा सकती हैं जो सामाजिक सरोकार उत्त्पन करने का अच्छा प्रयास हो सकता हैं।

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