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सौंदर्यीकरण के अभाव में अपनी ही अस्तित्व को लेकर तरस खा रहा है कोंच गांधी उच्चतर विद्यालय का खेल स्टेडियम

      – डी के यादव

मगध हेडलाइंस: कोंच(गया) खेल का मैदान विशेषतः जिसमें दर्शकों के बैठने के लिए दीर्घाएँ बनी हों, स्टेडियम कहलाता है। कोंच प्रखंड अंतर्गत खेल प्रेमियों और खिलाड़ियों के लिए सबसे अधिक दुखदाई यह है कि पूरे प्रखंड में एक भी खेल मैदान शासन प्रशासन विकसित नहीं करा पाया। जबकि प्रखंड में सैकड़ों प्रतिभाएं ऐसी हैं जिन पर अगर ध्यान दिया जाए तो वह खेल में अपना और अपने प्रखंड का नाम रोशन कर राष्ट्रीय – अंतरराष्ट्रीय स्तर तक परचम लहराया सकते हैं। स्वस्थ शरीर के लिए जरूरी है कि व्यक्ति खेलकूद जैसी गतिविधियों में व्यस्त रहे। सरकार की भी मंशा है कि खेलकूद को बढ़ावा मिले और हर प्रखंड और पंचायत में खेल मैदान विकसित हो इसके लिए समय-समय पर शाषन प्रशासन आदेश जारी करता भी रहता है लेकिन स्थानीय प्रशासन ऐसे आदेशों को दर किनार कर युवाओं और किशोर में पनपती खेल भावनाओं का गला घोंट देता है। कोंच प्रखंड में लाखों की आबादी होने के बावजूद भी खेल के मैदान को प्रशासन विकसित नहीं करा पाया। जिसका परिणाम यह है कि प्रखंड के बच्चे और युवा गलियों में अपने खेल का शौक पूरा करने पर मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि प्रखंड में खेल प्रतिभाओं की कमी है। गया जिले के कोंच प्रखंड में ऐतिहासिक खेल मैदान उपेक्षित है। एक से अधिक एकड़ में फैला गांधी उच्चतर विद्यालय का खेल मैदान सरकारी प्रबंधन के अभाव में खराब हो रहा है और लेकिन कोई देखने वाला नहीं है। यहाँ स्‍टेडियम बना लेकिन देख रेख के अभाव में जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है। दीवारों पर दरार और प्लास्टर का जहाँ तहां उखडा होना एवं रंग रोगन की बदसूरती खुलेआम देखी जा सकती हैं। इस संबंध में मुकेश कुमार गांधी (समाजसेवी) बताते हैं कि प्रखंड अंतर्गत ग्राम कोंच में गाँधी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का ऐतिहासिक खेल मैदान है प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक कई खेल टूर्नामेंटों का गवाह रहा है। लेकिन समय की मार और उपेक्षा के कारण यह अपनी रौनक खोने लगा है। दूसरी ओर इसके लिए इतनी घोषणाएं हो गई है कि यह उन्‍हीं के नीचे दबा है। इस मैदान में स्टेडियम बना एवं घेराबंदी की गई लेकिन घेराबंदी चहार दीवारें दरक कर जीर्ण शीर्ण अवस्था में हो चुकी हैं। दक्षिण छोर का दीवार तो कब का ढह सा गया है। स्टेडियम की सीढ़ियां भी दरक गयी हैं। पश्चिमी छोर की दीवारें रंग रोगन के अभाव में उदास दिखती हैं। खेल मैदान मरम्मत और देख रेख के अभाव में ऊबड़ खाबड़ सा दिखता है।

लगा रहता है पशुओं का आना जाना: घेराबंदी नहीं रहने के कारण मैदान के क्षेत्र में मवेशियों का आना जाना लगा रहता है। कोंच प्रखंड के अलावा गोह, रफीगंज, टेकारी, गुरारू सहित अन्य कई प्रखंडों से खिलाड़ी इस मैदान पर अपनी प्रतिभा निखारने और दिखाने पहुंचते हैं। जब-जब बिहार में विधानसभा एवं लोकसभा आम चुनाव आता है तब-तब इस मैदान में दर्जनों चुनावी सभाएं होती हैं। दर्जनों स्टार प्रचारक नेताओं का हेलीकॉप्टर इसकी छाती पर गर्जना भरते हैं। नेता जी इसके मस्तक पर सवार होकर चुनावी शंखनाद करते हैं। वे अपने उम्मीदवार को चुनाव जिताने की अपील करते हैं और बदले में इस स्टेडियम को विकसित करने की घोषणा करके चले जाते हैं। फिर अगली बार के चुनाव में इसी मैदान पर इसी मुद्दे को लेकर फिर अगला चुनाव जिताने की अपील करने पहुंच जाते हैं। हर बार के चुनाव में स्टेडियम एक अहम मुद्दा होता है। क्षेत्र के लोग कई दशक से खेल मैदान के जीर्णोद्धार के लिए लगातार संघर्ष करते आ रहे हैं, लेकिन अबतक इन्हें आश्‍वासनों से अधिक और कुछ नहीं मिला है। बिहार सरकार ने भी कई बार प्रदेश के प्रत्येक प्रखंड में एक खेल मैदान को मानक स्टेडियम बनाने की घोषणा कर चुकी है, लेकिन यह कार्य रूप में कब दिखेगा यह पता नहीं चल रहा है। मैदान का सही रख रखाव नहीं होने एवं सरकारी उपेक्षा के कारण क्षेत्र के तमाम बुद्धिजीवी, समाजसेवी, शिक्षाविद एवं खेल प्रेमी इसके अस्तित्व को लेकर चिंतित हैं। बिहार के कई वरिष्ठ नेता, सांसद मुख्य मंत्री, उपमुख्यमंत्री इस मैदान पर कई चुनावी सभाएं कर चुके हैं लेकिन सौंदर्यीकरण के अभाव में अपनी ही अस्तित्व को लेकर तरस खा रहा है ये स्टेडियम।

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