
औरंगाबाद। औरंगाबाद ज़िले के सदर प्रखंड स्थित पुनपुन-बटाने नदी संगम पर मकर संक्रांति के दिन अक्सर भव्य धार्मिक माहौल देखने को मिलता था। विभिन्न जगहों से यहां हजारों श्रद्धालु नदी में आस्था की डुबकी लगाने आते थे लेकिन पिछले दो सालों से कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रभाव के चलते इस वर्ष भी श्रद्धालुओं की काफ़ी कमी देखी गई हैं जिसके चलते दो मुहान घाट सूने पड़े रहें। बता दे की यहां विष्णु धाम मंदिर भी हैं जहां भगवान विष्णु के अलावा अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। इस मंदिर की सबसे ख़ास बात यह है कि यहां एक विशेष पत्थर हैं जो पानी में डूबता नहीं है। कहा जाता है कि वह पत्थर राम सेतु का है। जो भगवान राम ने समुद्र देवता की पूजा की, लेकिन समुद्र के देवता प्रकट नहीं हुए जिसके बाद भगवान श्रीराम क्रोधित हो गए और समुद्र सूखा देने के लिए अपना धनुष उठा लिया। इससे भयभीत होकर समुद्र देवता प्रकट हुए, और बोले हे, श्रीराम आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थर का पुल बनाएं। मैं इन सभी पत्थरों का वजन अपने ऊपर संभाल लूंगा इसके बाद नल एवं नील वानरों ने समुद्र में पुल का निर्माण करने की जिम्मेदरी जिम्मेदारी और सभी वानरों के सहयोग से पुल बनाया। काले रंग के ऐसे पत्थर थे जो पानी पर तैरते थे। इसी पुल से हो कर राम और उनकी सेना लंका पहुंची। ऐसे पत्थर आज भी वहां देखे जाते हैं। यहां उस पत्थर को किसी महात्मा द्वारा सैकड़ों वर्ष पूर्व लाया गया था। शास्त्रों के अनुसार, मकर सक्रांति से सूर्य उत्तरायण में आ जाते हैं और इसके साथ ही एक माह से चल रहे मल मास का समापन एवं शुभ कार्य की शुरुआत भी हो जाती हैं। सूर्य उत्तरायण होने पर धार्मिक स्थलों में जमकर दान पुण्य होता है। पुष्कर में भी मकर संक्रांति के अवसर पर शुक्रवार को लोगों ने पुष्कर सरोवर में आस्था की डुबकी लगाकर गरीबों और गायों को दानपुण्य किया। श्रद्धालुओं ने सरोवर पूजा-अर्चना कर मंदिरों के दर्शन भी किये। गायों को चारा खिलाकर धर्म लाभ प्राप्त किया। मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन तिल, तेल, गुड़, शक्कर सहित अन्य खाने और पहनने की चीजो के दान का बहुत महत्त्व है। इन्हीं मान्यताओं के चलते लोगों ने तिल के लड्डू, तिलपट्टी सहित अन्य वस्तुओं का दान किया। व्यापारियों की ओर से भी जगह-जगह स्टाल लगाकर पौष बड़े के रूप में लोगों को प्रसाद वितरित किया गया। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार द्वारा जारी की गएं नये गाइडलाइन के पश्चात यहां श्रद्धालुओं की आवागमन कम हो गई है। अमूमन ऐसा ही नजारा मकर सक्रांति के अवसर पर यहां नदी में स्नान करने एवं मंदिर में दर्शन श्रद्धालु बीते सालों की तुलना में कम ही नज़र आएं।