डॉ ओम प्रकाश कुमार
दाउदनगर (औरंगाबाद) ज्ञान यज्ञ महोत्सव में तुलसी के पौधे का विवाह कार्यक्रम किया गया। जीयर स्वामी ने तुलसी के पौधे को पूजकर एवं वैवाहिक कार्यक्रम किया। कहा जाता कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष एकादशी को प्रबोधिनी या देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इसी दिन विगत चार माह से सोये विष्णु भगवान जागृत हो जाते हैं और सभी पूर्व आराधनाओं का शाश्वत फल प्रदान करते हैं। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि कार्तिक में भगवान श्री हरि की आराधना व उनका मंगल गान करने से वे चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं।भारतीय परंपरा में प्रत्येक घर में तुलसी के पौधे लगाने का विधान है। तुलसी के पौधे में एक प्रकार का तेल होता है जो वायुमंडल में हवा के बहाव से घर के वातावरण को प्रदूषण से दूर रखने में सहायक होता है। कहते हैं कि जिस घर में तुलसी की पूजा होती है वहां रिद्धि सिद्धि का वास होता है। तुलसी पूजा का आधार धार्मिक ही नहीं बल्कि इसका औषधि होना भी है। जियर स्वामी ने बताया कि स्कंदपुराण में वर्णित कथा के अनुसार जालंधर नामक महादैत्य की पतिव्रता पत्नी वृंदा का सतीत्व जालंधर की अमरता का आधार बन गया था।तब सृष्टि के कल्याण के उद्देश्य से भगवान विष्णु को वृंदा के सतीत्व भंग का प्रयास करना पड़ा। तभी जालंधर का वध संभव हुआ। जब वृन्दा को विष्णु के इस कृत्य के बारे में पता चला तब उसके क्रोध की सीमा नहीं रही। उसने विष्णु को पत्थर होने का श्राप दे डाला। इसी कारण से प्रभु को शालिग्राम कहा जाता है। वृन्दा के श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को शालिग्राम स्वरुप में तुलसी से विवाह करना पड़ा था। तब से तुलसी विवाह की अनूठी रस्म हर साल मनाई जाती है। भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम और तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस अवसर पर व्रत रखने से पूर्व जन्म में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है जिन दंपतियों को पुत्री नहीं होती वे जीवन में एक बार तुलसी विवाह कर कन्या दान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। ऐसी शास्त्रों की मान्यता है। इस दिन विवाह का विशेष महत्व है।यह विवाह के लिए अबूझ साया है अर्थात बिना मुहूर्त का विचार किये विवाह किया जा सकता है। तुलसी विवाह मनुष्य की प्रकृति के प्रति श्रद्धा का संकेत देता है।