जहां जनता के अधिकारों व उसके मूल्यों पर राजनीति हावी हो वहां लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता: समदर्शी
स्वांत: सुखाय की भावना से राजनीति करने वाले लोगों से लोकतंत्र के महान मूल्यों की रक्षा करने की उम्मीद रखना हैं व्यर्थ: समदर्शी
औरंगाबाद। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में सत्ता के अहंकार में चूर गुंडे ने किसानों को अपनी गाड़ी के नीचे रौंदकर मार दिया। यह बात जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के प्रदेश महासचिव सह किसान प्रकोष्ठ के प्रभारी संदीप सिंह समदर्शी ने कहा है। उन्होंने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में राजनीति उतनी ही महत्व रखती है जितनी कि दांतों के बीच जीभ। जैसे कि दांतों के बीच में रह कर जीभ को बड़ी सावधानी से अपने सारे काम करने पड़ते हैं। वैसे ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में रखकर राजनीतिक दलों को राजनीति भी करना पड़ता है। लेकिन भाजपा सरकार खुद को अलोकतांत्रिक होने की प्रमाण बाट रही है। सारी सीमाएं पार कर चुकी है।
अब्राहिम लिंकन की माने तो ऑफ द पिपल, फार द पिपल और बाई द पिपल’’ को लोकतंत्र के लिए मानक माना गया है।
कहा कि स्वतंत्र भारत से पूर्व और स्वतंत्र भारत के पश्चात एक लंबी अवधि बीतने के बावजूद भी भारतीय किसानों की दशा में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है। कहने के लिए भारत एक कृषि प्रधान देश है। लेनिन किसानों के दशा और दिशा से साफ पता चलता है कि आजतक तमाम राजनितिक दलों ने किसानों के विकास व उत्थान के नाम पर केवल रोटियां सेंकने का काम की है। जबकि देश की अर्थव्यवस्था के विकास में किसानों का अहम योगदान है। बावजूद किसानों की समस्याएं कम होने की बजाए दिन ब दिन बड़ी व जटिल होती जा रही हैं। पिछले ग्यारह महिनों से किसान दिल्ली के सड़कों पर आंदोलित है। अब तक सौकड़ो किसानों की मौत हो चुकी है। इस बीच कुछ प्राकृतिक कारणों से तो कुछ अप्राकतिक कारणों से। लेकिन उन्हें न तो कोई सुनने वाला है और न कोई देखने वाला है। पिछले सात सालों में सरकार भले ही किसानों के हितैसी होने का दंभ भरती रही है। लेकीन इनके कथनी और करनी में अंतर किसान व देश की जनता जान चुकी है। इस ग्याहरह महिनों के आंदोलन में किसान कही सड़कों पर पिटे जा रहे हैं तो, कही उनकी हत्याएं करवायी जा रही है। हाल ही के घटना में रविवार को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटा आशीष मिश्रा की कार ने प्रदर्शन कर रहे किसानों को रौंद दिया, जिससे चार की मौत हो गई और वहीं, इसके बाद भड़की हिंसा में चार अन्य लोग और मारे गए। इस पर सरकार ठोस कार्यवाई के बजाय दलगत राजनीति कर रही है, और आरोपी को बचाने का भरसक प्रयास कर रही है।
कहा कि सरकार किसानों पर जैसा जुल्म कर रही है, वैसा जुल्म तो अंग्रेज भी नहीं करते थे। स्थिति यह की इस घटना के बाद घटना स्थल पर जा रहे तमाम विपक्ष के बड़े नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। चाहे वह राहुल गांधी हो या प्रियंका गांधी वाड्रा या फिर अखिलेश यादव हो। बड़े शर्म की बात है कि इन तमाम बड़े नेताओं का हिरासत के पिछे आरोप है कि ये घटना स्थल पर जाकर हिंसा को कम के बजाय और भड़का देगें। हद है इस कुंभ करनी सरकार की जो संवेदनहीनता की सारी हदें पार कर चुकी हैं। यह देश के लोकतंत्र वादी व्यवस्था का गला घोट रही है। सरेआम हत्याएं हो रही है और ये अपराध नियंत्रण व दोषी को सजा देने के बजाय अपराधी को सियासी संरक्षण दे रही हैं, और विपक्ष को बदनाम कर रही हैं। गौरतलब हैं कि इन परिस्थितियों में यदि विपक्ष पीड़ित परिवारों से मिलता है तो इसमें हिंसा भड़काने वाली बात कहा से उत्पन्न होती है। हालांकि इस घटना ने सरकार के क्रूर और अलोकतांत्रिक चेहरे को एक बार फिर उजागर कर दिया है।
कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर राजनित करने वाले लोग आज आजादी के 75 वीं वर्षगाठ पर अमृत महोत्सव पर मना रहे हैं तो दूसरी तरफ राष्ट्रपिता के सपनों को अपने पैरों तले रैद रहे है। गांधी ने किसानों को भारत की आत्मा कहा था। कहने मात्र के लिए किसानों के हित में दर्जनों योजनाएं भी चलाई जा रही है जिसका परिणाम आज साफ दिख रहा है कि आज देश के प्रधानमंत्री हमारे अन्नदाता किसानों के साथ घोर अन्याय कर रहे हैं। उनके साथ नाइंसाफी कर रहे हैं, जो किसानों के लिए कानून बनाए गये, उसके बारे में उनसे सलाह मशवरा तक नहीं किया गया, और तो और बात तक नहीं की गई, यही नहीं उनके हितों को नजरअंदाज करके सिर्फ चंद धन्ना सेठ दोस्तों से बात करके किसान विरोधी तीन काले कानून बना दिए गए।
कहा कि आज देश का लोकतांत्रिक व्यवस्था चौपट हो गई है जिससे सामाजिक व्यवस्था गहरे संकट के दौर से गुजर रही है। आसमान छूती महंगाई और बढ़ते बेरोजगारों की फौज ने लोगों को जीना मुहाल कर दिया है। वहीं देश में चौपट हो चुकी शिक्षा व्यवस्था और गंभीर हो चली है। कृषि संकट को लेकर आए दिन किसान आत्महत्या करने को विवश हो रहे हैं। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का तगमा दिया गया है। लेकिन यहां की विकृत राजनीति ने उस लोकतंत्र की कब की हत्या कर दी है जिस लोकतंत्र में जनता के अधिकारों व उसके मूल्यों पर राजनीति हावी हो वहां लोकतंत्र की हत्या निश्चित है।जो राजनीति स्वांत: सुखाय के भावना से कर रहे हो उनसे लोकतंत्र के महान मूल्यों की रक्षा करने की उम्मीद रखना व्यर्थ है।