मगध हेडलाइंस: औरंगाबाद । पितृपक्ष की आहटों के साथ ही पुनपुन नदी और उसके घाटों की चर्चा शुरू हो जाती है जहां पर पितृपक्ष में श्रद्धालु बड़ी संख्या में आकर पिंडदान करते हैं। ऐसा ही एक प्रमुख स्थल जम्होर की धर्मशाला रही है जहां कभी पिंडदानों का जमघट लगा रहता था। आज यह 116 साल पुरानी भव्य इमारत निरंतर उपेक्षा की वजह से उजाड़ पड़ी है और इसके संरक्षण की जरूरत महसूस की जा रही है। उल्लेखनीय है कि हिंदू मान्यता के अनुसार गया धाम में पिंडदान करने वाले के पूर्वज जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। परंतु गया धाम से पूर्व पुनपुन नदी के तटों पर पिंडदान करने की परंपरा है। इसी परंपरा को देखते हुए जम्होर में पुनपुन नदी के तट पर एक रेलवे स्टेशन का निर्माण ब्रिटिश काल में किया गया था और उस रेलवे स्टेशन के समीप ही वर्ष 1907 में राजस्थान के खेतड़ी के मूल निवासी तथा कोलकाता में प्रवास करने वाले राय सूरजमल शिव प्रसाद झुनझुनवाला बहादुर के द्वारा एक विशाल धर्मशाला का निर्माण इस स्टेशन के पास किया गया था। जो भी पिंडदानी गया जाते थे वह इसी स्टेशन पर रुक कर इसी धर्मशाला में ठहरकर पिंडदान करते थे। यह धर्मशाला वैसे तो निजी मिल्कियत है और समय समय पर झुनझुनवाला के वंशज यहां तैनात एक केयरटेकर को कुछ पैसे भेजते हैं लेकिन उसे इस धर्मशाला भवन का संरक्षण हो पाना संभव नहीं है। जानकार लोगों का कहना है कि इस भवन की स्थिति ऐसी है कि अगर अभी भी बढ़िया ढंग से मरम्मत कर दी जाए और रंग रोगन कर दिया जाए तो सैकड़ो लोग यहां रह सकते हैं और यह पूरी तरह से उपयोगी साबित होगी। स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि वह झुनझुनवाला बहादुर के परिजनों से पत्राचार कर अथवा इस भवन को अधिग्रहीत कर इस धर्मशाला का पुनरुद्धार करने की कोशिश करें ताकि जान उपयोगी यह स्थल आगे भी जनता के उपयोग में आता रह सके।
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