मो. फखरुद्दीन अंसारी
ईद की नमाज में मांगी अमन व भाईचारे के लिए दुआ
औरंगाबाद। प्रत्येक पर्व-त्योहार के पीछे परंपरागत लोक-मान्यताएं एवं कल्याणकारी संदेश निहित है। इन पर्व-त्योहारों की श्रृंखला में मुसलमानों के प्रमुख त्योहार ईद का विशेष महत्व है। हिन्दुओं में जो स्थान ‘दीपावली’ का है, ईसाइयों में ‘क्रिसमस’ का है, वही स्थान मुसलमानों में ‘ईद’ का है। ऐसे में आपको बता दें कि कोरोना महामारी के कारण पिछ्ले दो सालों तक पवित्र रमजान महीना को सादगी से मनाया गया था। ईदगाहों व मस्जिदों में कुछ ही लोगों को नमाज पढ़ने की अनुमति थी। लेकीन इस साल महामारी की स्थिति सामान्य हो जाने से नियमों की सारी बंदिश हटा दी गई। इसी सिलसिले में औरंगाबाद ज़िले के विभिन्न जगहों पर मंगलवार की सुबह से ही मुस्लिम समाज के लोग नए कपड़े पहनकर अपने परिवार के साथ नमाज अदा करने के लिए ईदगाह व मस्जिदों की ओर निकल पड़े। लोगों ने नमाज अदा कर अमन चैन व भाईचारे की दुआ मांगी। इस दौरान गले मिलकर एक दूसरे को ईद की बधाई भी दी।
ज़िले के नवीनगर प्रखंड स्थित खजूरी टिका जामा मस्ज़िद में ईद उल फितर की नमाज़ पढ़ा गया। इस वर्ष ईद को लेकर लोगों के चेहरे पे एक अलग खुशी देखने को मिला। इसका मुख्य कारण दो वर्ष के बाद बड़ी संख्या में नमाज केलिए एक साथ लोग मस्जिद जमा हुएं। इस अवसर पर मो. हाफ़िज साबिर रजा क़ादरी रिज़वी ने बताया कि एक महीने के उपवास के बाद ईद अल-फितर रमजान के अंत का प्रतीक है। रमजान महीने भर के उपवास व अल्लाह ही इबादत के दौरान शक्ति व धैर्य के लिए अपने प्रभु-अल्लाह का सम्मान करने के लिए इसे मनाया जाता है। ईद-उल-फितर का त्योहार दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व में काफ़ी संख्या में मुस्लिम नमाज़ में हिस्सा लेते हैं। इस दिन को मनाने के लिए मुसलमान नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे को ईद मुबारक की शुभकामनाएं देते हैं। वहीं, बड़ों द्वारा छोटों को ईदी के रूप में उपहार भी प्रदान की जाती हैं।