औरंगाबाद। सोन नदी से बालू की निकासी पर रोक के कारण बालू की किल्लत के चलते निर्माण कार्य व कामगर मजदूरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जहां सरकार बेरोजगारों को रोजगार देने की बात कहती है, वहीं बालू बंद कर लाखों लोगों को बेरोजगार बना रही है। इस मामले में सेंट्रल बैंक के कोऑपरेटिव अध्यक्ष संतोष कुमार सिंह ने कहा कि बालू बंद होने से सरकार को जहां करोड़ों के राजस्व का नुकसान हो रहा हैं वहीं इस व्यवसाय से जुड़े लाखों मजदूर बेरोजगार व बेहाल है। एक ओर अवैध बालू के धंधा में माफिया मालामाल हो रहे हैं तो दूसरी ओर मजदूर गरीबी और भूखमरी के शिकार हो रहे हैं। इनकी समस्याओं का ग्राफ को निरंतर बढ़ रहा है। हालांकि धंधे में सफेदपोश नेताओं की मिली भगत से यह धंधा रहा सहा फल- फूल भी रहा है जिसमें सरकार भी मस्त है। केवल समस्याओं का सामना कामगार मजदूर और इसके अभाव मकान निर्माण कार्य न कर पा रहे लोग हैं। हालांकि चोरी छिपे बेचने वालों की कोई कमी नहीं है, आये दिन बिहार के विभिन्न थानों में अवैध बालू से लदे ट्रैक्टर ट्राली, ट्रक एवं हाईवा पकड़े जा रहे हैं। लेकिन बालू माफियां कमने के बजाय बढ़ते जा रहे है। कहा कि इस बीच सबसे बड़ी समस्या मजदूरों की है। सरकार द्वारा अब तक बेरोजगारी व गरीबी से निपटने के लिए कई योजनाएं चलायी गयी है जो कही न कही सभी योजनाओं का प्रमुख उद्देश्य कामगर मजदूरों को रोजगार का अवसर प्रदान करना रहा है। लेकिन दुर्भाग्यवश किसी न किसी कमियों व खामियों का ये योजनाएं निरंतर शिकार होती रही है नतीजा बेरोजगारी एवं गरीबी का दंश इस वर्ग के साथ ज्यों का त्यों बना रहा है। कहा कि सोन नदी का बालू अब केवल राजस्व उगाही का जरिया नहीं रहा। बल्कि इसमें दबंग और सियासी संरक्षण पाए बड़े राजनेताओं और पूंजीपतियों के हवाले हो गया। जो कार्य पहले मजदूर किया करते थे अब वह बड़ी-बड़ी मशीने कर रही है और बालू की अवैध खनन पर बंदी के बावजूद चोरी छिपे चालू है। मजदूरों का हाल : नाम न उजागर करने की शर्त पर कई मजदूरों ने कहा कि कोरोना से ज्यादा पेट की आग सताती है। हमारे यहां खेती का मौसम समाप्त होते ही गांव में काम का मिलना कम हो जाता है। इधर बरसात के मौसम में अक्सर बैठकर समय काटना पड़ता है। ऐसे में घर परिवार चलाने में काफी कठिन हो गया है। इस हालात में कई मजदूरों को दो वक्त की रोटी जुगाड़ करना मुश्किल हो गया है। इनका कहना है कि अभी कोरोना से उबरे भी नहीं की दूसरी तरफ सरकार बालू को बंद कर हम सभी को जान बूझ कर भूखे पेट सोने के लिए मजबूर कर दी हैं। इधर महंगाई का अलग ताना बाना है। जो रोजमर्रा की सामग्रियों की कीमतों में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी की जा रही है। आज बढ़ते महंगाई के कारण इन परिस्थितियों में घर चलाना मुश्किल हो गया है तो बच्चो को शिक्षा और अन्य मूलभूत सुविधाओं की पूर्ती करें। जहां सरसों तेल पहले 90 और 100 रूपये लीटर मिलते थे। अब वह करीब 200 रुपए मिल रहे हैं। कहा कि बेरोजगारी के कारण स्थिति यह है कि आए दिन औरंगाबाद शहर के जामा मस्जिद के समीप सैकड़ों मजदूर सुबह-सुबह टोलीयों में पहुंच जाते है और काम पर ले जाने वाले रहनुमा का इंतजार करते है। जब कोई व्यक्ति उनकी ओर आता दिखता है तो वे लोग तेज कदमों से उस ओर चल पड़ते हैं ताकि वह रहनुमा उन्हें काम पर ले जाएं। इस दौरान जब किसी व्यक्ति की जरूरत एक मजदूर की होती है तो उसके साथ कई मजदूर चलने को तैयार हो जाते हैं। इस हालात में काम पर ले जाने वाले लोग संकोच में पड़ जाते हैं कि इनमें से किसे ले जाएं और किसे न ले जाएं। इन परिस्थितियों में एक मजदूर के ही पैसे पर दो-तीन लोग काम करने को तैयार हो जाते हैं। ताकि वे अपने परिवार का किसी तरह भरण पोषण कर सके। हालांकि इस दौरान जब उन्हें काम नहीं मिलता है तो निरा
श होकर घर भी वापस लौटना पड़ता है। इनके इस अनियमित मजदूर का काफ़ी प्रभाव उनके दैनिक जीवन पर पड़ रहा है। कहा कि इस धंधे को बंद होने से ईट, गिट्टी, छड़ व सीमेंट पर भी प्रतिकुल प्रभाव पड़ रहा है। जो बालू पहले तीन हजार रुपये में एक ट्रैक्टर ट्राली उपलब्ध होता था। अब बालू माफिया के सहयोग से आठ से नौ हजार में लोग खरीदने को विवश हैं। सरकार शीघ्र इन मजदूरों के बारे में सोचे और तथाकथित समस्याओं का समाधान करें।