– डी के यादव
कोंच (गया) प्रखंड के शक्तिधाम में नवरात्र का मेला लग चुका है। बड़ी संख्या में विभिन्न जिलों से यहां भक्त व उनके परिजन पहुंच चुके हैं। पूजा-पाठ का दौर जारी है। यह धर्मस्थल आस्था और अंधविश्वास का मिलाजुला रूप दिखता है। बुनियादी सुविधाओं के घोर अभाव के बाद भी यहां भक्तों का हुजूम पहुंचा है। वे सड़क किनारे लकड़ियों से निर्मित प्लास्टिक के बसेरे में रहने को विवश हैं। उनके न रहने का कोई सुरक्षित ठिकाना है, ना खाने की कोई अच्छी व्यवस्था। मां के प्रति उनकी आस्था है कि वे यहां इतने कष्ट झेल रहे हैं। भक्त यहां पागलों की तरह नाचते, गाते और झुमते देखे जा रहे हैं। यहां आने वाले भक्तों में महिलाएं अधिक हैं। कई पढ़े-लिखे लोग भी यहां इस गतिविधि में शामिल होते हैं। धाम पर कुछ भक्त वर्ष भर रहते हैं। पिछले कोरोना काल में भी यहां बड़ी संख्या में भक्त निवास कर रहे थे।यह कोई प्राचीन धर्म स्थल नहीं है। पहले इस जगह का नाम चिचौरा था। बीते वर्ष 2013 में देवी का शक्ल एक पीपल के पेड़ में होने की बात प्रकाश में आई थी। उसके बाद यहां उस पेड़ को लोग पूजा करने लगे। धीरे-धीरे इसके प्रति लोगों की प्रसिद्धि बढ़ी और यह स्थान मुक्तिधाम के नाम से प्रसिद्ध हो गया। हालांकि, विज्ञान का हवाला देते हुए इन सारी चीजों से कुछ लोग अंधविश्वास को बताते हैं।जानकार बताते हैं कि जब मस्तिष्क की तंत्रिकाएं सही तरीके से संयोजित होकर कार्य नहीं करती हैं तो व्यक्ति ऐसी हरकत करता है । कुंठा, अवसाद या तनाव में भी इन तंत्रों पर दबाव बनता है और सही रूप से कार्य नहीं करता है। हिस्टीरिया के कारण भी शरीर में कंपन, रोना, चिल्लाना आदि के लक्षण होते हैं । ऐसे में चिकित्सा – विज्ञान पर विश्वास ही सही है।