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पतितो को भी मोक्ष प्रदान करती है श्रीमद्भागवत कथा – अनिल शास्त्री 

       – मिथिलेश कुमार –

मगध हेडलाइंस: अम्बा (औरंगाबाद)। अम्बा चिल्हकी हाई स्कूल के मैदान में श्री गो गीता गायत्री सत्संग सेवा समिति के तत्वावधान में जनकल्याणार्थ हेतु श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान समारोह में परम श्रद्धेय वेदाचार्य अनिल शास्त्री ने आत्मदेव गोकर्ण धुंधकारी सहित राजा परीक्षित संवाद सुनाया।

आत्मदेव का जीवन चरित्र तथा परिवारिक परिचय सुनाते हुए शास्त्री जी ने कहा कि आत्मदेव ब्राह्मण बहुत ही सहनशील तपस्वी, मनस्वी, ज्ञानी, ध्यानी तथा संपत्ति के मामले में कुबेर के समान थें। किंतु सभी सुख होने के बावजूद भी संतति सुख से वंचित थे। संतति अर्थात पुत्र प्राप्ति के लिए आत्म देव ब्राह्मण ने अनेकानेक उपाय किया।

उनके प्रारब्ध में संतति का कोई योग नहीं था। आत्म देव ने सन्यासी के सामने निवेदन किया। उनके भावों को देखते हुए सन्यासी दंडी महात्मा ने प्रसाद देकर पत्नी को खिलाने के लिए कहा। किंतु उनकी पत्नी ने प्रसाद ग्रहण नहीं किया और गौ माता को दे दिया। भगवत प्रसाद के फलस्वरूप गो के पेट से एक पुत्र जन्म लिया जिसका सारा शरीर मनुष्य के समान था, किंतु कान गाय के समान थे।

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इसलिए नामांकरण में आचार्यों ने उस पुत्र का नाम गोकर्ण रखा तथा धुंधली जनित संतान को आचार्यों ने धुंधकारी नाम प्रदान किया। दोनों एक ही घर में रहते थे लेकिन दोनों के प्रकृति में बहुत ही अंतर था। गोकर्ण बाल्यावस्था से ही ज्ञानी ध्यानी प्रवृत्ति के थे तथा धुंधकारी उदंड प्रवृत्ति का था। शास्त्री जी ने बताया कि गोकर्ण घर की परिवारिक परिवेश को देखते हुए घर का त्याग कर तीर्थ पर निकल गए परंतु धुंधकारी घर में ही रहे।

उदंड स्वभाव से वशीभूत होकर उसका चारित्रिक पतन हो गया। पिता का कमाया हुआ धन संपदा को अनायास ही समाप्त कर दिया और कालांतर में मरने के बाद प्रेत योनि को प्राप्त हो गया। संयोगवस धुंधकारी का बरसों बाद बड़े भाई के साथ साक्षात्कार हुआ तो प्रेत योनि से छुटकारा प्राप्त करने के लिए बड़े भाई से आग्रह करने लगा। तब उन्होंने कृपा की और धुंधकारी को सूर्य नारायण भगवान के आदेशानुसार श्रीमद् भागवत शास्त्र की कथा सुनाया। भागवत कथा के फलस्वरूप धुंधकारी का प्रेत जोनी से उद्धार हुआ।

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