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गरीबों के घर नहीं जले दीप, दीपावली में दिखावा का बढ़ रहा प्रचलन

– डीके यादव

कोंच (गया) दीपावली के त्योहार को मनाने के मुख्यतः दो कारण हैं। पहला, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लंकापति रावण का वध कर भगवान राम, भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता के साथ अपने राज्य अयोध्या वापस लौटे थे। पुष्पक विमान से रात के अंधेरे में अयोध्या पहुंचे राम के स्वागत के लिए अयोध्यावासियों ने घर के बाहर दिए जलाए और रौशनी कर विमान को यथास्थान उतरने की राह दिखाई। कालांतर में यह उस घटना को याद करने और खुशी मनाने की परंपरा के तौर पर प्रचलित हुआ।दूसरा कारण, धन, सुख और समृद्धि की देवी लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की पूजा अर्चना कर धनार्जन व लाभ की कामना करना है। आश्चर्य की बात यह है कि आज दीपावली के पहले कारण की चर्चा बहुत कम होती है। नन्हें मुन्ने स्कूली छात्रों सहित किसी से भी यदि दीपावली के पर्व को मनाने का कारण पूछो तो वह धन, सुख और समृद्धि के लिए लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की पूजा अर्चना को ही इसका कारण बताता है। हालांकि भगवान राम के अयोध्या लौटने की घटना वाले प्रसंग की चर्चा करने पर वे इससे अनभिज्ञता नहीं जताते। लेकिन पूजा सभी लक्ष्मी की ही करते हैं भले ही मुहूर्त देर रात ही क्यों न हो? लोगों का ऐसा व्यवहार यह साबित करने के लिए काफी है कि धन का लोगों के जीवन में कितना महत्व है। अन्य त्यौहार जहां, साल दर साल अपना महत्व खोते जा रहें हैं वहीं दीपावली का त्योहार प्रतिवर्ष भव्यता का नया इतिहास रचता जा रहा है। आखिर, ऐसा क्यों? दीपोत्सव की खुमारी के बीच यही सही समय है कि हम उन छिपे संदेशों को जाने ताकि हमारी कामना रूपी दिए की रौशनी सदा प्रज्वलित रहें और कभी मंद न पड़े। हालांकि इसके साथ ही एक सवाल भी सदैव अस्तित्व में रहता है कि क्या देश में केवल अमीरों का दिया ही लगातार जल रहा है? क्या कारण हैं कि गरीब और गरीब होता जा रहा है जबकि अमीर और ज्यादा अमीर? यह विडंबना ही है कि एक तरफ जहां भारत में साल दर साल धनकुबेरों की संख्या में खूब वृद्धि हो रही है वहीं भूख, कुपोषण के कारण होने वाली मौतों की संख्या के मामले में देश की स्थिति अपने गरीब पड़ोसी देशों से भी गई गुजरी है। कर्ज के तले दबे किसानों द्वारा हर साल सैकड़ों की तादात में मौत को गले लगाने की घटना भी वैश्विक स्तर पर शर्मिंदगी का कारण बन रही है। लेकिन ऐसा हो क्यों रहा है जबकि सभी सरकारें गरीबों और किसानों का हितैषी होने का दंभ भरती हैं? यह बड़ेेे दुर्भाग्य की बात है कि भारत जैसे देश में जहां लक्ष्मी की साक्षात पूजा होती है वहां हम धनार्जन को लेकर पाखंडी रवैय्या अपनाते हैं। दरअसल, हम दोहरे चरित्र को जीते हैं। हम दिल से दौलत तो कमाना चाहते हैं लेकिन सिद्धांतों की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। जहां तक दीपावली के साल दर साल भव्य होते जाने का प्रश्न है तो इसका सीधा सा उत्तर यह है कि जहां अन्य पर्व महज एक पुरानी परंपरा को जारी रखने का माध्यम बन चुके हैं, वहीं दीपावली प्रगति और उन्नति के त्यौहार के रूप में परिवर्तित हो गया है।

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