औरंगाबाद। महिला और पुरुष समाज के दो मानक हैं। महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में अपनी योग्यता साबित कर रही हैं, वहीं, अपनी कर्तव्य परायणता भी सिद्ध कर रही है कि वे किसी भी स्तर पर पुरूषों से कम नहीं हैं। जनता सेवा के कार्यों से हर किसी को आकर्षित किया है। ऐसा ही वाक्या साक्षात्कार किया है ज़िला परिषद क्षेत्र संख्या 12 की निवर्तमान जिला पार्षद नासरीन निशा ने। वे लगातार बिहार पंचायत चुनाव 2016 और 2021 में दो बार ज़िला पार्षद बनी। उन्होंने इस जीत के साथ समाज को महिला सशक्तिकरण का अनूठा प्रमाण दिया है जिस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ी वह अत्यंत पिछड़ा आरक्षित सिट है। वह अपने राजनितिक जिवन की शुरुआत में कठिन संघर्ष, सकारात्मक सोच तथा बेहतर करने की चाह में कभी हार न मानने वाली कड़ी चुनौतियों से लड़ने वाली एवं राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच कांटे की टक्कर देने वाली महिला नेत्रियों में से एक हैं।
निशा मानती हैं कि शुरुआती दिनों में उन्हें काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। लेकिन संघर्ष से कभी समझौता नहीं किया। राजनीतिक चुनौतियों के आगे वह खुद को कमजोर नहीं होने दी। इन संघर्षों ने उन्हें कठिन समय का सामना करने के लायक बनाया है। उनकी जीवन की शुरुआत बेहतर सुविधा संसाधन के बीच जरूर हुई। लेकिन जीवन की उपलब्धियां इतना आसान नहीं रहा। उनके पिता रेलवे इंजीनियर थे जिससे घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। मूलभूत सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी। शिक्षा स्वास्थ और बेहतर सुविधाएं मिली। वह बताती है कि उनके पति डॉ शाहिद हुसैन चिकित्सा पदाधिकारी है। जो फिलहाल रोहतास ज़िले के बिक्रमगंज में पदस्थापित है। यानी मायके में भी आर्थिकता की कोई कमी नहीं थी और जब ससुराल में भी सबकुछ अच्छा है। उनके पती भी समाजिक सरोकार से जुड़े रहते हैं। जब भी लोगों की मदद का अवसर मिलता है। वे समाज सेवा करते रहते है। उनके पति डॉ शाहिद ने कहते हैं कि समाज सेवा से बड़ा कोई पुण्य कार्य नहीं है। समाज सेवा अगर निस्वार्थ भाव से की जाए तो मानवता का कर्तव्य सही मायनों में निभाया जा सकता है। हर व्यक्ति समाज का अभिन्न हिस्सा होता है। जब तक हम समाज में रहते हैं तब तक समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य करना हम सभी का नैतिक दायित्व हैं। बीमारी कभी किसी को बताकर नहीं आती और जब आती है तो पीड़ित के साथ ही पूरे परिवार को प्रभावित करती है। चाहें वह आर्थिक रूप से हो या मानसिक रूप से हो। बीमारी का संबंध अमीर और गरीब से नहीं है। लेकिन बीमारी की वजह से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की समस्याएं। इस बीच जरूर बढ़ जाती हैं जिसमें वे खुद गरीब लाचार और क्षेत्र की जनता का मुफ़्त में इलाज़ करते हैं। असल में वे एक दंत चिकित्सक हैं। उनका यह राजनीति में तीसरी पीढ़ी है, जो जनता के बीच सेवा भाव से तत्पर है। बताते है कि उनके दादा मो. हुसैन जेपी सेनानी थे। वे वर्ष 1977 में जनता पार्टी से रफीगंज क्षेत्र से चुनाव लड़ें जिनके नेतृत्व को जनता ने स्वीकार किया और वे विधायक बने थे। वह साधारण व्यक्तित्व के असाधारण अंदाज में जन सेवा भाव की जज्बा रखते थे। वे मजबूत इच्छाशक्ति तथा राजनीतिक परिणामों की परवाह किए बगैर गरिब मजदूर और शोषित समाज की समस्या तथा विरोधियों पर कटाक्ष किया करते थे। वह असहाय और मासूम लोगों के हमदर्द थे। उनका देश के चर्चित व बिहार के कद्दावर नेता पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से अच्छा संबंध था। वे बताते है कि उनकी मां भी कर्मा भगवान पंचायत की प्रतिनिधित्व कर चुकी है। यहां की वह पूर्व मुखिया रही हैं।
विचार : निवर्तमान ज़िला पार्षद बताती है कि वह अपने पिछले कार्य कार्यकाल में क्षेत्र का चहुमुखी विकास की हैं और इस बार भी जनता के उम्मीद और भरोसा कायम करूंगी। जनता के विकास के लिए वह कृत संकल्पित हैं। सरकारी योजनाओं का समुचित लाभ जनता को उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका मानना है की सशक्त महिला, सशक्त समाज देश के विकास में दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। देश में महिलाओं का सशक्तिकरण होना आज की महती आवश्यकता है। महिला सशक्तिकरण यानी महिलाओं की आध्यात्मिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक शक्ति में वृद्धि करना हैं। भारत में महिलाएं शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला व संस्कृति, सेवा क्षेत्रों, विज्ञान व प्रौद्योगिकी आदि के क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं। सशक्तिकरण⁶⁵ का पक्ष मात्र आर्थिक रूप से धन उपार्जन करना सशक्त होना ही नहीं हैं बल्कि वैचारिक बदलाव भी ज़रूरी है। जब तक हमारी व्यव्हार का हिस्सा नहीं बनेंगी। तब तक महिला सशक्तिकरण का नारा बस खेल बन कर रह जाएगा।