(राम विनय सिंह)
मगध हेडलाइंस: गोह (औरंगाबाद) गोह में श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ सह भागवत कथा के दूसरे दिन प्रवचन करते हुए लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि राजा एवं प्रजा दोनों एक-दूसरे के कर्मों का परिणाम भोगते हैं। मन नहीं बुद्धि और विवेक से कोई निर्णय लें तो अच्छा है। मानव जीवन पर अन्न और संग का गहरा प्रभाव होता है। हम जैसा अन्न ग्रहण करते हैं वैसा मन बनता है। जैसी संगति करते हैं, वैसा आचरण होता है। दुष्टों का अन्न और संग दोनों विनाशकारी होता है।
श्रीमद् भागवत महापुराण कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अधर्म, अनीति और अन्याय के सहारे कुछ समय के लिये समाज में वर्चस्व कायम किया जा सकता है। लेकिन यह स्थाई नहीं हो सकता। नीति, न्याय और सत्य ही स्थायित्व देता है। प्रेरक प्रसंग में महाभारत की चर्चा करते हुए कहा भीष्म पितामह 58 दिनों से वाण-शैया पर लेटे थे। उन्हें याद कर कृष्ण की आंखों में आंसू आ गये। युधिष्ठिर ने आंसू का कारण पूछा। कृष्ण ने कहा कि कुरू वंश का सूर्य अस्ताचलगामी हैं। उनके दर्शन किया जाय।
द्रौपदी सहित पांचों पाण्डव वहां पहुंचे।जिले के विभिन्न हिस्सों से लोग पहुंच श्री कृष्ण के आग्रह पर भीष्म राजधर्म और राजनीति का उपदेश देने लगे। द्रौपदी मुस्कुरा दी। भीष्म ने मुस्कुराने का राज पूछा। द्रौपदी ने कहा कि आज आप उपदेश दे रहे हैं कि ‘अन्याय नहीं करना चाहिए। अन्यायी का साथ नहीं देना चाहिए और अन्याय होते देखना नहीं चाहिए। चीर-हरण के वक्त आपकी यह नीति और धर्म कहां थे। भीष्म ने कहा कि उस वक्त अन्न और संग के दोष का मुझ पर प्रभाव था।
मनुष्य अर्थ (वित्त) का दास होता है। अर्थ किसी का दास नहीं होता। उन दिनों में दुर्योधन के अर्थ से पल रहा था। गलत लोगों का अन्न और संग ग्रहण नहीं करना चाहिए। धीर और वीर पुरूष को भाग्यवादी नहीं, कर्मवादी हो। संत का प्रवचन सुनने के लिए प्रखंड सहित जिले के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालुओं पहुंचे।