– मिथिलेश कुमार की रिपोर्ट
कुटुंबा (औरंगाबाद) बिहार में पंचायती राज व्यवस्था का निर्माण समाज में हर व्यक्ति को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने की अवधारणा से किया गया था लेकिन आज उसके ठीक यह विपरीत है। सरकार की योजनाओं में भारी गड़बड़ी कर जनता सेवकों ने पंचायत में लूट का आतंक मचा रखा है। जबकि सरकार के निर्देशानुसार ज़िला प्रशासन समय-समय पर लगातार जांच कर रही हैं। इसके वावजूद इन जन सेवकों की कमियों को उजागर करने की बजाय कई योजनाओं की सफल क्रियान्वयन का सर्टिफिकेट बांट रही है। यह मामला औरंगाबाद ज़िले के कुटुंबा प्रखंड की है। जहां मुखियों की जिम्मदारी पंचायत अंतर्गत सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का निष्पक्ष रूप से क्रियान्वयन की है।
वहीं मुखिया जनता को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने की बजाय योजनाओं की राशि में भारी बंदरबाट कर खुद मालोमाल हो रहे हैं यानी उनकी संपत्ति दिन दूनी व रात चौगनी बढ़ रही हैं। यानी ऐसे में यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी की मुखिया जी को मानों अलादीन का जादुई चिराग मिल गया हैं। जबकि वहीं मुखिया जी चुनाव से पूर्व दूसरों की दो पहिया वाहन पर अक्सर घूमने देखे जाते थे।
लेकिन आज चुनाव जीतते ही वे नई चमचमाती स्कॉर्पियो के मालिक बन गए। 2500 रूपये का मासिक भत्ता पाने वाले मुखिया के पास महज एक साल की कार्यकाल में आलीशान मकान, जमीन – जायदाद की अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। जैसे मुखिया जी एक जन प्रतिनिधि का कुर्सी नहीं बल्कि कुबेर का खजाना पा लिया हो। वहीं योजनाओं की राशि वितरण व सफल क्रियान्वयन के ऑडिट में किसी अनियमितता का उजागर ना होना इस कुर्सी को और दिलचस्प बना देता है।
ऐसे में अब प्रदेश के युवाओं को रोजगार और नौकरी के पीछे नहीं बल्कि मुखिया जी की कुर्सी के ओर भागना चाहिए। ताकि बिहार सरकार को भी सहूलियत हो जिसमें सरकार विभिन्न प्रकार की रोजगार सृजन यथा भर्तियों निकलने की बजाय जन प्रतिनिधियों की कुर्सी के प्रति अधिक ध्यान दे। इस दौरान गौरतलब हैं कि मुखिया जी के नीचे काम करने वाला एक दैनिक मजदूर जो प्रतिदिन 300 रूपये कमा कर, ढंग से अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं कर सकता है। वहीं मुखिया जी 2500 रूपये की मासिक भत्ता पाकर आज हाई प्रोफाइल मेंटेन कर रहे हैं। इनकी यह स्टाइल जनता को चकाचौंध कर रही हैं। वहीं ऐसे में इनकम टैक्स व ईडी जैसी जांच एजेंसियों को इन मुखियों की जांच करनी चाहिए ताकि इनकी जादुई कुर्सी के वास्ताबिक कारणों का पता लग सके।
हालांकि मुखिया जी के जादुई कुर्सी के खिलाफ कई पंचायतों के जानताओं द्वारा प्रखंड व जिला स्तर तक शिकायत की गई। लेकिन शिकायत पत्रों में सुनवाई की बजाय वह पत्र सरकारी अलमारियों में धूल फांक रही होती हैं। यानी ऐसे में यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं कि मुखिया जी के जादुई कुर्सी का असर वहां भी हैं जिसमें इन जन सेवकों की जादुई कुर्सी पर कार्रवाई के अभाव से अप्रत्याशित रूप से लाभ पहुंचाता है। ऐसे में उन आला अधिकारी पर भी कार्रवाई होनी चाहिए जो इन्हें संरक्षण प्रदान करते हैं।
यदि यही हाल रहा तो देश के उन महान स्वतंत्रता सेनानियों की कल्पनाओं का क्या? उनके सपनों का क्या जिन्होंने देश की जनता के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। मुखिया जी की जादुई कुर्सी की हर हाल में जांच में हो जिसको लेकर मगध हेडलाइंस एक जन जागरूकता मुहिम चलाएंगी ताकि सरकार की योजनाओं का समुचित लाभ जनता को मिल सके और मुखिया जी के जादुई कुर्सी बेपर्दा हो सके।