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महिलाओं को खुशी के मौके पर डांस करना उनकी हैं आज़ादी : सुजीत प्रसाद

       – महताब अंसारी

कोंच (गया) प्रखंड क्षेत्र के ग्राम कंचनपुर निवासी सुजीत प्रसाद जो इंजीनियर की पढ़ाई की है। उन्होंने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि शादियों में औरतों को नाचना ठीक है ? क्यों नहीं नाचना चाहिए? उन्होंने लिखा है कि हमारा समाज नाचने वाली औरतों को अच्छे निगाहें से नहीं देखती है, समाज को मानना है कि जो औरतें नाचती हैं उनका चरित्र अच्छा नहीं होता है। सुरक्षा के ख्याल से देखें तो आजकल हरेक के हाथ में कैमरा फोन है जिससे वो वीडियो रेकॉडिंग करके इस वीडियो से आपके घर के इज़्ज़त का तमाशा बना सकते हैं। कहीं शादी में नाचते वक़्त शरीरिक क्षति न पहुँचा लें साथ ही साथ उनका कोई आभूषण खो न जाये जिससे उनका और उनके परिवार का आर्थिक नुकसान ना हो जाए। चुकी ये जो नाचती है असल में बिना तरीके के नाचती है जिससे हो सकता है उनका पैर और कमर में मोच भी आ सकता है। ऐसे तो आपके घर के औरते गांव के किसी आदमी या औरत के छोटे- से छोटे बातों पे लड़ती हैं इस बार ये नाच देखकर अगर कोई गांव के लोग नचनिया कहेंगे तो गांव में तो और विवाद बढ़ेगा साथ ही साथ आप अपने ही गांव में असहज महसूस करेंगे। गांव के शादियों में ऐसे भी काफी फूहरङ गाने बजते हैं जो आप अपने परिवार के साथ नहीं सून सकते हैं अतः इस गानाओ पर नाचना कहीं गलत गाने का बढ़ावा देने जैसा नही हैं। उन्होंने नाचना चाहिए पर कहा है कि ये नाच कोई नाच नहीं है यह एक भावना है यह एक दर्द है जो दूल्हे के माता – पिता और भाई बहनों को समाज ने कई ताने और बड़े बोलो से दिया है। अपना समाज ऐसा है एक बच्चे के जन्म के साथ ढेर सारी उम्मीद पालन चालु कर देता है साथ ही साथ कई दर्द देने से भी नहीं चुकते हैं जैसे बच्चा परीक्षा में असफल हो गया तो कई तरह के आलोचना झेलना पड़ता है जैसे आपका बेटा नालायक है उसका भविष्य अंधकार में है उसका घर नहीं बस सकता है लेकिन ये नाच उसी घर बसने की खुशी का है। अब जैसे गांव छोड़ शहर पढ़ने गए गांव आने पर फिर ढेर सारे सवाल जैसे कोई नौकरी क्यों नहीं लगी, तुम्हारी शादी की उम्र निकली जा रही है दुबारा वही ताना कि तुम्हारा घर नही बसने वाला, इन सारे सवालो का जवाब है वो नाच ! कहीं न कहीं नाचने में वो पड़ोसी और रिश्तेदार भी होते है जिनको कभी उम्मीद ही नहीं थी की लड़का कुछ करेगा उनके शिकवे गिले मिटाने का दिन है और ये नाच उनको अपने लोगों के बीच दूरिया को कम करता है और जहाँ तक बात रही लोगों का जो नाचने वाली कहते है उनको नाचने वाली के नाच और अपने घर के औरतों के नाच में अंतर नहीं पता या नहीं समझना चाहते हैं तो उनको बता दूं नाचने वाली या नाचने वाला वो दुसरो के मर्ज़ी और पैसों के लिए नाचते हैं उनका नाच कोई आंतरिक ख़ुशी के वजह से नहीं होता बल्कि मजबूरी के वजह से होता है। हमारा समाज पुरूष प्रधान समाज रहा है जहा कई सदियों से औरतों को बाहर अपनी ख़ुशी जाहिर करने का अधिकार नहीं है भले वो ख़ुशी अनायास ही आये उन्हें हमेशा दबाकर रखने को विवश किया गया है। ये दिन उनको सदियों से चली आ रही परम्परा को तोड़ कर ख़ुशी में नाचे का दिन है।आज जब लड़के लडकी को पूरा दुनिया बराबरी मानने लगा है तो हम क्यूं ना उनको ऐसे बंधनों से मुक्त कर दें जो उनको एक पल को शुकुन दे।

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