मगध हेडलाइंस: औरंगाबाद। किसानों और फल व्यापारियों को अब कार्बाइड से फल पकाने की बजाय प्राकृतिक तरीके से पकाने के लिए औरंगबाद ज़िला मुख्यालय अंतर्गत फारम पर राइपनिंग चैंबर बनाया गया है जिसका रैपिंग क्षमता 120 मिट्रिक टन हैं। कार्बाइड से पके हुए फलों से कैंसर जैसी घातक बीमारी होने की आशंका बनी रहती है लेकिन राइपनिंग चैंबर से पक्के हुऐ फल से स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता। इस बात की जानकारी देते हुए सहायक निदेशक जिला उद्यान डॉ श्रीकांत ने बताया कि फलों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए उक्त राइपनिंग तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तकनीक की मदद से फलों को लंबे समय तक सुरक्षित रख कर किसानों और फल व्यापारियों अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। राइपनिंग तकनीक से फल पकाना आसान है। इस तकनीक से फलों को पकाने पर फलों को किसी तरह का खतरा नहीं होता है। इस तकनीक का इस्तेमाल आम, पपीता और केला को पकाने में किया जाता है। उन्होंने बताया कि जिला मुख्यालय अंतर्गत फारम पर बने उस रैपिंग चैंबर की क्षमता 120 मिट्रिक टन है। इसकी खासियत यह है कि फलों को पकाने के लिए, जो कार्बाइड का इस्तेमाल किया जाता हैं, उसकी जरूरत नहीं पड़ती हैं, बल्कि इसमें एथिलिन से फलों को पकाया जाता हैं। कार्बाइड से तरह – तरह के रोग यथा कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी होने की संभावना बना रहता है। लेकिन रैपिंग चैंबर एक ऐसा प्रकिया है, जिसमें फलों को प्राकृतिक रूप से पकाया जाता है, इसका टेंपरेचर 18 से 22 डिग्री सेल्सियस मेंटेन कर तीन दिनों तक रखा जाता हैं। इसके बाद इन कच्चे फलों पर एथिलीन गैस को छोड़ा जाता है। इस गैस के प्रभाव से फल धीरे-धीरे पकने लगते हैं। इसी के साथ फलों के रंग में भी परिवर्तन होने लगता है। उक्त रैपिंग चैंबर से स्थानीय स्तर पर लोगों को रोज़गार भी प्राप्त हो रहा है। यह काफी अच्छी यूनिट है, इस चैंबर की खास बात यह है कि इससे पक्के हुए फल से स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा है कि यदि कोई किसान अपनी उत्पाद जैसे – नींबू आम पपीता या केला सहित अन्य उत्पादों को पकाना चाहते हैं, तो कम लागत में सुरक्षित पका सकते हैं।
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