– मिथिलेश कुमार –
मगध हेडलाइंस: अम्बा (औरंगाबाद)। 18 वर्षों से वेतन एवं मानदेय को लेकर आशा एवं आशा फैसिलिटेटर संघ का दो दिवसीय पंचम राज्य सम्मेलन देव वैली ग्लोबल स्कूल आफ नर्सिंग, एरका कोलनी, औरंगाबाद में आयोजित किया गया। इस मौके पर मीरा सिन्हा, अरुण कुमार ओझा, संजय कुमार की अध्यक्षता की सत्र का उद्घाटन अखिल भारतीय आशा फेडरेशन की राष्ट्रीय महासचिव मधुमिता बंदोपाध्याय ने किया।
झंडोतोलन के पश्चात शोभा यात्रा निकाली गई जिसमें उपस्थित लोगों ने सम्मेलन स्थल से अम्बा बाजार तक पदयात्रा की। मधुमिता बंदोपाध्याय ने कहा कि सरकार की असंवेदनशीलता के कारण आशा की स्थिति निराशा में बदल चुकी है। पिछले 18 वर्षो से स्वास्थ्य के क्षेत्र में सेवा देने के बाद भी कोई वेतन, मानदेय नहीं दिया जा रहा है। हम लोगों ने वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान जान की बाजी लगाकर देशवासियों को बचाने का काम किया है जिसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आशा वर्कर्स को ग्लोबल लीडर की संज्ञा दी है। किन्तु समान काम करने वाली आशा वर्कर को वाजिब मजदूरी भी नहीं दी जा रही है।
देश की 12 लाख आशा एवं आशा फैसिलिटेटर को संगठित कर देश व्यापी आंदोलन की घोषणा की जाएगी। सत्र को मुख्य अतिथि अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामपरी ने कामकाजी महिलाओं के अधिकारो की संघर्ष को आगे बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा कि आज महिला भेदभाव की शिकार हैं। बिहार में वर्ष 2007 के आशा आंदोलन को याद करते हुए कहा कि राज्य की 84 हजार आशा कार्यकर्ताओं को अपने ऊपर हो रहे आर्थिक हमले के विरोध एवं जनवादी ट्रेड यूनियन अधिकारो की रक्षा के लिए खड़े होने की जरूरत है।सत्र को बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ की राज्याध्यक्ष नीलम कुमारी, किसान नेता महेन्द्र प्र. यादव ने भी सम्बोधित किया।
प्रतिनिधि सत्र का उद्घाटन में सीटू राज्य महासचिव गणेश शंकर सिंह ने किया कहा कि आशा वर्कर्स सहित सभी स्कीम वर्कर्स के अधिकारो को संघर्षो के बल पर हासिल करेंगे। उन्होंने चेतावनी दिया कि कार्पोरेट के पक्ष में खड़ी सरकार श्रम कानूनों में परिवर्तन कर मजदूरों के वाजिब हक को मारना चाहती है जिसका जवाब आने वाले चुनावों में देश का किसान मजदूर देगा। अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शशिकांत राय ने कहा कि ठेका संविदा उन्मूलन अधिनियम का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन सरकार द्वारा किया जा रहा है जिसे व्यापक एकता के बल पर रोका जाएगा। उन्होंने समान काम का समान वेतन की मांग की।