विविध

रेफरल अस्पताल में आयोजित हुई लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण एवं ग्रामीण समिति की बैठक 

       – मिथिलेश कुमार

कुटुंबा (औरंगाबाद) रेफरल अस्पताल कुटुंबा में लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण एवं ग्रामीण समिति की बैठक मंगलवार को की गई जिसकी अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष नीलम देवी के द्वारा की गई। इस दौरान पिछले बैठक में लिए गए निर्णय पर चर्चा की गई। प्रभारी डॉक्टर नरेंद्र कुमार सिन्हा ने बताया कि डॉक्टरों की पर्याप्त संख्या होने के बावजूद उनके अनुपस्थित रहने के कारण हॉस्पिटल के संचालन में समस्या हो रही है।

आयुष डॉक्टर के बलबूते हॉस्पिटल का संचालन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि डॉक्टर अंकिता कुमारी जिनकी पोस्टिंग देउरा में है। इनकी ड्यूटी हॉस्पिटल में भी लगाई गई थी परंतु जुलाई माह से हॉस्पिटल नहीं आ रही है।

इसी तरह डॉ.जयंती कुमारी, डॉ. अंकिता कुमारी, डॉ.सुफियान कैसर, डॉ. मनीष कुमार, डॉ. प्रदयुत रंजन, डॉ. आकांक्षा सिंह, डॉ. हर्षवर्धन, डॉ. रविराज मोहित, डॉ. रवि रंजन के द्वारा रेगुलर ड्यूटी नहीं किया जा रहा है। प्रखंड प्रमुख धर्मेंद्र कुमार ने बताया की मामले पर संज्ञान लेकर उच्च स्तरीय अधिकारियों से बात की जाएगी और दोषी पाए जाने पर विभागीय कार्रवाई की जाएंगी। बैठक में चंद्रशेखर सिंह, रमाकांत सिंह, साकेत कुमार, निर्मला देवी, डॉक्टर खालिद अनवर, डॉ. प्रदीप पाठक आदि उपस्थित थे।

हॉस्पिटल में व्याप्त गोरखधंधे की खुली पोल : 

बैठक के दौरान नेउरा गांव निवासी लालजी रजक ने हॉस्पिटल का बिल दिखाते हुए बताया की 23 सितंबर को अपनी पत्नी संध्या देवी का बंध्याकरण का ऑपरेशन रेफरल अस्पताल में कराया था। सरकार के नियमानुसार हॉस्पिटल में जेनेरिक दवाएं 60 प्रतिशत से 70 प्रतिशत डिस्काउंट पर दिए जाने के बावजूद तेरह सौ रुपए का बिल बनाया गया है। जो अस्पताल में व्याप्त गोरखधंधा की पोल खोल रहा है।

इस पर प्रभारी नरेंद्र प्रसाद ने बताया की महिला का पहले से सर्जरी होने के कारण दवाओं को मंगाया गया होगा। परंतु लालजी रजक ने बताया की नेउरा की आशा के द्वारा दवा खरीदने को कहा गया था। स्थानीय लोगों ने बताया आशा कार्यकर्ताओं के द्वारा इस तरह के गोरखधंधे किए जा रहे हैं जिसे हॉस्पिटल प्रबंधन के द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है। हॉस्पिटल परिसर के मेडिकल में जेनेरिक दवा रखने का प्रावधान है परंतु यहां इथिकल ( ब्रांडेड ) दवा भी रखते हैं।

हॉस्पिटल परिसर में होने के बावजूद प्रभारी द्वारा नजरअंदाज किया जाना हॉस्पिटल की मैनेजमेंट पर सवाल खड़ा करता है। प्रभारी बताते हैं कि मेडिकल की जांच करना ड्रग इंस्पेक्टर का काम है। हम लोग उसमें कुछ नहीं कर सकते हैं।

गौरतलब है जब पूरा हॉस्पिटल परिसर उनके अधिकार क्षेत्र में आता है तो इस तरह की बयान देकर वे अपनी जवाबदेही से बचना चाहते हैं। हॉस्पिटल प्रबंधक दीपक कुमार के द्वारा कहा जाता है कि एक दिन जांच कर लेंगे। इस तरह की गैर जिम्मेदाराना बयान उनके कार्य शैली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।

बैठक में प्रभारी और मैनेजर के द्वारा डॉक्टरों की अनुपस्थिति पर सवाल उठाए जा रहे हैं परंतु हॉस्पिटल में व्याप्त गोरखधंधे पर सवाल कौन करेगा।स्थानीय लोगों ने बताया की सरकार से मिलने वाली मुफ्त दवाएं हॉस्पिटल परिसर के बाहर मेडिकल पर बेची जाती हैं। यह बात अपने आप में भ्रष्टाचार से लिप्त तंत्र पर सबसे बड़ा सवाल है। क्या स्वास्थ्य विभाग जनता के सवाल का जवाब दे सकता है कि कैसे जनता को मुफ्त मिलने वाली जीवनदायिनी दवाएं हॉस्पिटल में व्याप्त गोरखधंधे और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं।

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