बढ़ती महंगाई के बदलते पैमाने व मायने से सरकार अचेत
विशेष। देश में लगातार बढ़ती महंगाई अब बेकाबू हो गयी है, जिससे आम जन जीवन अस्त व्यस्त सा हो गया हैं, बावजूद सरकार मस्त है। विडंबना यह है कि गरीबी के पैमाने व मायने बदलने को लेकर काफ़ी आलोचनाओं के बावजूद सरकार अचेत है। यानी सरकार के पास कीमतें बढ़ाने के हर तर्क मौजूद हैं, मगर उन्हें रोकने का एक भी उपाय नहीं है। डीजल-पेट्रोल से लेकर खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि ने गरीब आम-अवाम को जीना मुहाल कर दिया है। मगर सरकार कुछ भी सुनने व कहने को तैयार नहीं है। एनडीए सरकार के इस दूसरे कार्यकाल को एक तरफ महंगाई का तो दूसरी तरफ मनमानी की कोई सिमा नहीं हैं और न ही महंगाई से उबरने का कोई बड़ा प्रयास दिखाई नहीं दे रहा है। महंगाई का असर अब सभी तबकों पर कहर बरपा रहा है। आखिर क्या वजह है आजकल हर दो चार दस दिन पर महंगाई बढ़ते ही चली जा रही हैं। हालांकि मंहगाई पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को जल्द से जल्द ठोस कदम उठाना चाहिए यदि महंगाई पर रोक नहीं लगाई गई तो हालात और गंभीर हो जाएंगे। वैसे सरकार चाहे तो कीमतों पर नियंत्रण कर सकती है, मगर इसके लिए उसे कड़े कदम उठाने पड़ेंगे। लेकीन अपने कुछ चंद दोस्तों को फायदा पहुंचाने के अलावा आम-अवाम, गरिब-मजदूर व किसान के लिए इनकी यथा स्थिति पर कुछ करना तो दूर बोलने से भी परहेज़ कर रही हैं। देश में महंगाई बढ़ने के प्रमुख कारणों में से एक यह भी है कि यहां भंडारण और परिवहन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है जिसके कारण सब्जियां, फल, दूध वगैरह सड़ता नहीं, बल्कि अनाज भी सड़ जाता है, जो एक अक्षम्य अपराध है। इसके बाद आयात-निर्यात व कारोबार में दिशाहीनता, जमाखोरी और कालाबाजारी की समस्याएं भी अपनी जगह हैं। सरकार यहां हस्तक्षेप कर सकती है। मगर उसे गरीब की रोटी-सब्जी की चिंता ही नहीं है। मानों इस महंगाई के कुचक्र में सरकार देश की गरिबी मिटाने के बजाय गरीबों को ही मिटा देना चाहती हैं। नाम न बताने के शर्त पर एक युवक ने बताया कि त्योहार के पहले ही महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है। लगातार बढ़ती महंगाई से उसके घर का बजट गड़बड़ा गया है। इससे कब निजात मिलेगी पता नहीं है। सरकार योजनाए बनाती है। लेकीन उन्हें पूर्ण रूप से और अच्छी तरह लागू करने मे असर्मथ होती है। सरकार की तय राशि का फायदा जरूरतमंद और गरीब को नही मिल पा रहा है जिसके चलते गरीबी का ग्राफ दिनोंदिन तेजी से बढ़ता चला जा रहा है और सरकार इस ग्राफ को उलटा पकड़कर दिखाने की जादुगिरी कर रही है। हालांकि आंकड़ों के तराजू में गरीबी को कई बार तोला गया है। लेकिन आश्चर्यजनक की बात हैं अब तक इसमें कोई ठोस परिवर्तन नहीं आए हैं। गरीबों की गिनती के लिए मापदण्ड तय करने में जुटे विशेषज्ञों के समूह की बात यदि सरकार स्वीकार करे तो देश की 50 % से अधिक आबादी गरीबी की रेखा से नीचे (BPL) पहुंच जाएगी। बदलते परिस्थितियों के मुताबीक देश में गृहयुद्ध जैसी भयंकर हालात पैदा हो रहे हैं। क्योंकि अब आम आदमी के लिए सामान्य जीवन जीना बेहद मुश्किल हो चला है। बढ़ती महंगाई, भूखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, बेकारी आदि को सहने के लिए आम आदमी बिल्कुल भी तैयार नहीं है।