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परंपरागत खेती से हटकर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे किसान, नाबार्ड पदाधिकारियों एवं कृषि वैज्ञानिकों ने लिया जायजा

(मिथिलेश कुमार)

अंबा (औरंगाबाद)। पारंपरिक कृषि से हटकर किसान अब बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं जिसमें कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान है। स्ट्रॉबेरी की खेती से किसान तगड़ी कमाई भी कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि फसल में कोई नुकसान ना हो। यह उक्त बातें नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक डॉ. सुनील कुमार ने कही हैं। अपको बता दे की मुख्य महाप्रबंधक डॉ. सुनील कुमार, जी एम सुधीर कुमार रॉय, बीके सिंह, कृषि वैज्ञानिक डॉ. अनूप चौबे एवं डॉ. संगीता मेहता ने अंबा स्थित चिल्हकी बिगहा गांव में स्ट्रॉबेरी की खेती का मुआयना किया।

इस दौरान आगे मुख्य महाप्रबंधक ने बताया कि किसान व वैज्ञानिक के परस्पर सहयोग से स्ट्रॉबेरी का उत्पादन काफ़ी अच्छा हो रहा है। फलों का बिहार एवं अन्य राज्यों में निर्यात कर किसान अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसका अध्ययन कर इस तरह के मॉडल अन्य दूसरे जिलों में भी लगाया जाएगा। बड़े पैमाने पर की जा रही स्ट्रॉबेरी की खेती को प्रोसेसिंग के लिए उत्पादक समूह का गठन किया जाएगा और प्रोत्साहन के अन्य बिंदुओं पर विचार किया जाएगा।

प्रोत्साहन के आश्वासन के बाद भी असंतुष्ट दिखे किसान : आत्मा अध्यक्ष बृज किशोर मेहता ने बताया कि कई बार प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा आश्वासन दिया गया है। वर्ष 2019 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी स्ट्रॉबेरी की खेती का मुआयना कर प्रोत्साहन का आश्वासन दिया था परंतु अब तक किसानों को किसी प्रकार की सहायता नहीं दी गई।

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किसानों ने बताई अपनी मांग : किसानों ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में प्रति एकड़ लगभग 6.5 लाख रुपए का खर्च आता है जिसमें सरकार द्वारा मात्र 20 हज़ार रुपयों की अनुदान राशि दी जाती है। जो लागत मूल्य के हिसाब से बहुत कम है। किसानों को महाराष्ट्र के पुणे से पौधा मंगवाना पड़ता है। जो लागत एवं परिवहन काफ़ी महंगा पड़ता है। इस परिस्थितियों में सरकार किसानों के लिए स्थानीय स्तर पर नर्सरी की व्यवस्था करें जहां से किसान कम मूल्य पर आसानी से पौधा खरीद सके। वहीं किसानों को 50 प्रतिशत सब्सिडी पर पौधा उपलब्ध कराया जाए तथा फलों के निर्यात के लिए ट्रांसपोर्टिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए। प्राकृतिक आपदा में कई बार फसल पूरी तरह नष्ट हो जाते है। ऐसे में किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। वहीं बचाव के लिए फसल बीमा करवाने का प्रावधान होना चाहिए।

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