औरंगाबाद। पुरानी मान्यता को तोड़ते हुए नातिन ने नाना की अर्थी को न केवल कंधा दिया, बल्कि श्मशान तक जाकर मुखाग्नि दी और अंतिम संस्कार किया। रुंधे गले एवं बहते आसुओं के बीच पुरुष प्रधान समाज में नातिन ने एक उदाहरण पेश कर बता दिया कि बेटा-बेटी समान होते हैं। इस दौरान मौजूद सभी लोगों की भी आंखें नम थीं।
हिंदू रीति रिवाज के अनुसार बेटियां और महिलाएं श्मशान में नहीं जातीं। मान्यता यह भी है कि बेटा न होने पर भी बेटियां पिता की अर्थी को कंधा या मुखाग्नि नहीं दे पातीं, लेकिन बिहार के औरंगाबाद जिले के अंबा प्रखंड अंतर्गत देव रोड डुमरा गांव में एबीवीपी के प्रदेश सह मंत्री व सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज की तत्कालीन छात्र संघ के अध्यक्ष आशिका सिंह ने इस मान्यता को तोड़ा है।
बताया जाता हैं कि डुमरा निवासी रामबिलाश सिंह पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे जिनका इलाज़ पटना के रूबन हॉस्पिटल, आईजीएमएस एवं पीएमसीएच जैसे कई बड़े अस्पतालों में करवाया गया। लेकिन उनकी हालत सुधारने की बजाय बिगड़ती चली गई जिसमें आखिरकार हार्ट ब्लैक होने से 19 नवंबर को उनकी मौत हो गई।
बताया जाता हैं कि स्व.रामबिलास सिंह ज़मींदार परिवार से ताल्लुक रखने थे। उन्होंने समाज हित में कई ऐसे कार्य किए जो गरीब परिवारों के हक में था। इनका कोई पुत्र नहीं था, केवल पुत्रियां थीं। उनका दाह संस्कार बनारस स्थित गंगा घाट पर किया गया। उनके निधन से परिजनों एवं शुभ चिंतकों में शोक व्याप्त है।
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