डॉ ओमप्रकाश कुमार
मगध हेडलाइंस: दाउदनगर (औरंगाबाद) कल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। महिला दिवस मनाने का उद्देश्य नारी को समाज की कुरीतियों से बाहर निकालकर उसे विकसित होने का सुअवसर प्रदान करना है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं के सम्मान और अधिकार के प्रति लोगों को जागरूक करना है। बात सन 1990 की है। जब अमेरिका में पहली बार एक समाजवादी राजनीतिक पार्टी ने एक कार्यक्रम आयोजित कर महिला दिवस मनाया जाने के प्रस्ताव को पारित किया।
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
महिलाओं की विडंबना : महिलाएं भले ही जागरुक हुई हैं और विकास की हैं, लेकिन सबसे बड़ी विडंबना है कि महिलाओं के प्रति आज भी समाज का नजरिया पूरी तरह नहीं बदला है। जहां एक ओर महिलाओं के विकास व स्वतंत्रता में पुरुषवादी मानसिकता कार्य करता है, वहीं महिलाएं भी कम दोषी नहीं हैं। आज भी बेटियों को पराया धन माना जा रहा है। यही कारण है कि देश में आज निरंतर इनके साथ अप्रिय घटनाएं घट रही हैं। ऐतिहासिक संस्कृति संपूर्ण विश्व में सबसे समृद्ध थी। पर आज के बदले परिवेश में नारी-गाली प्रथा समाज में कोढ़ के रूप में व्याप्त हो गई है। अकारण ही किसी अन्य की गलती का खामियाजा गाली के रूप में मातृ शक्ति को भुगतना पड़ रहा है।
कहती हैं महिलाएं : लक्ष्य कोचिंग सेंटर के सीटेट के विद्यार्थी नीतू कुमारी का कहना है कि आज के परिवेश में महिला हर क्षेत्र में उच्च पदों पर कार्यरत हैं। फिर भी वे असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हैं। आये दिन देश के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं पर अत्याचार हो रहें हैं। उनके प्रति समाज का रवैया चिंताजनक है। महिला सशक्तिकरण एवं महिला अधिकार बेमानी प्रतीत होता है। स्त्री स्वयं सशक्त है। आज के परिवेश में हम स्त्री और पुरुष को अलग-अलग न बांटे। स्त्री को अलग नजरिए से न देखें, बल्कि हम उसे संपूर्ण मानव की दृष्टि से एक संपूर्ण मानव समझे। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस स्त्रियों को अपनी ऊर्जा और मन की शक्ति को पहचानने की जरूरत है, क्योंकि स्त्री सब कुछ है। मां है, बहन है, बेटी है, पत्नी है, गुरु है और मित्र भी है।
स्त्रीत्व एवं मातृत्व गुणों का हो रहा है।लक्ष्य कोचिंग सेंटर के सीटेट के विद्यार्थी मनोरमा कुमारी का कहना है कि नारी का सशक्तिकरण किस दिशा में ले जा रहा है यह खुद सोचने की जरूरत है। महिलाओं को आडंबर व दिखावा का रोग लग गया है। स्त्रीत्व एवं मातृत्व गुणों का लोप हो रहा है। इन दो गुणों के बिना नारी का क्या अस्तित्व रह जाएगा। आज नौकरी करने वाली महिलाएं मातृत्व गुण को खोते जा रही है। नारी भले सशक्तिकरण की ओर बढ़ रही है पर एक सत्य ये भी है कि नारी को नारी ही दबाने का काम कर रही है। बेटे और बेटियों में फर्क नारी द्वारा भी की जाती है। महिलाओं को जागरूक करने, नारी शोषण के खिलाफ आवाज उठाने व विकास की दौड़ में पुरुषों के समानांतर खड़ा होने के संकल्पों के साथ बालिकाओ को आगे आना चाहिए।आज महिला किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नही है। दाउदनगर मौलाबाग निवासी डॉ ओमप्रकाश कुमाऱ के पत्नी मीरा कुमारी एवं जिनोरिया गांव निवासी सूर्यदेव सिंह की पुत्री मालती कुमारी का कहना कि आज की नारी शिक्षा, समाजसेवा, सेना, विज्ञान व तकनीक जैसे हर क्षेत्र में मजबूती के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। नारी को अपने गौरवपूर्ण अतीत को ध्यान में रखकर त्याग, समर्पण, स्नेह, सरलता आदि गुणों को नहीं भूलना चाहिए। भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में अब काफी सुधार के बावजूद आज भी तरह-तरह के अत्याचार महिलाओं पर जारी है।
सशक्तिकरण सोच से होती है उत्पन्न :- ज्योति कुमारी का कहना है कि महिलाओं से अनुरोध है कि बुराई को कभी भी सहन नहीं करें और जहां कहीं भी बुराई दिखे तो तुरंत प्रतिकार करें।अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो रास्ते में बाधायें कभी भी रोड़ा नहीं बन सकती। महिला अगर ठान ले तो हर काम है संभव।
दाऊदनगर शहर के मौलाबाग स्थित लक्ष्य कोचिंग सेंटर के निदेशक डॉ ओम प्रकाश कुमार, दाऊदनगर प्रखंड के करमा ही गांव निवासी सौरभ कुमार का कहना हैं की जिस तरह से समाज में महिलाओं को बवाना बना दिया गया है। महिला को नीच दृष्टि से एवं कठिन दृष्टि से देखा जाता है । अगर महिला को सम्मान दिया जाए एवं उनके साथ सही से व्यवहार किया जाए तो महिला भी किसी क्षेत्र में कम नहीं है। अगर जिस दिन मनोबल के साथ महिला किसी काम को ठान ली तो ओ महिला उस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए तैयार रहती है। पुरुषों को भी चाहिए कि महिलाओं का हक और सामान उसका ना छीने तथा किसी भी कार्य में उन्हें सहयोग करें। आज महिला नहीं होती तो इस सृष्टि का निर्माण नहीं होता और नहीं किसी घर में बेहतर ढंग से परिवार चलता। घर की सुंदरता महिला पर ही टिकी है जिस घर में महिला नहीं है उस घर का क्या हालत होगा या किसी व्यक्ति से पूछने की जरूरत नहीं है।