औरंगाबाद। गत 2 सितंबर को राष्ट्रीय जांच आयोग (NIA) की छापेमारी की घटना को लेकर ज़िला पार्षद प्रतिनिधि व राजद नेता श्याम सुंदर ने कहा कि यह मेरे लिए ऐतिहासिक सदमे का दिन है। इस दिन सुबह के करीब छह बजे एनआईए की सात सदस्यीय टीम मेरे पैतृक निवास स्थान औरंगाबाद जिले के उपहारा थाना अंतर्गत महेश परासी आ धमकी और करीब छह घंटे तक छापेमारी की। अधिकारियों का कहना था-आप माओवादी नेता विजय कुमार आर्य के रिश्तेदार हैं।
इस लिए आपके घर का सर्च वारंट है। क्या किसी संदिग्ध व्यक्ति का रिश्तेदार होना संवैधानिक अपराध है? बिखरे सामानों को देखने से ऐसा लग रहा था कि मेरे घर में रेड नहीं, डकैती हुई है। कुछ बहुमूल्य किताबों को एनआईए की टीम अपने साथ ले गई। वे सारी किताबें बाजार से खरीदी हुई हैं। आश्चर्य है कि देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसियों में शुमार एनआईए की नजर में लिखने वाला लेखक दोषी नहीं हैं, छापने वाला प्रकाशक दोषी नहीं हैं। ऐसे में गौरतलब है कि पढ़नेे वाला दोषी कैसे हो सकता हैं।
उन्होंने कहा कि एनआईए की इस करतूत के खिलाफ कोर्ट जा रहा हूं। जरूरी कागजात एक-दो दिनों में मिल जाएगा। मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार में भी ले जाऊंगा। मिलने का समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग करता हूं। इस सबके बीच, बड़ा सवाल है कि आखिर मेरे घर में एनआईए की रेड क्यों? यह कानून मुंबई हमले के बाद 31 दिसंबर, 2008 में अस्तित्व में आया। केंद्र की भाजपा सरकार वर्ष 2019 में इस कानून में संशोधन की।
इसके अनुसार मानव तस्करी, जाली मुद्रा, प्रतिबंधित हथियारों के निर्माण व बिक्री, साइबर आतंकवाद, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम-1908, यूएपीए -1967 आतंकवादी गतिविधियों की जांच के लिए बना है। ऐसे में हमारा सवाल है कि क्या मैं मानव तस्कर, जाली मुद्रा कारोबारी, प्रतिबंधित हथियारों का सौदागर, साइबर अपराधी या फिर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त हूं।
यह लांछन मुझ जैसे संवैधानिक, लोकतांत्रिक मूल्यों पर जीने वाले पर क्यों? मेरी सामाजिक एवं राजनीतिक प्रतिष्ठा धूमिल करके भारत सरकार को क्या आखिर मिलेगा। मेरे बढ़ते राजनीतिक एवं सामाजिक प्रभाव से घबराकर पिछले आठ वर्षों में आठ मुकदमे लाद चुकी है। उन्होंने कहा कि जनता की अदालत में देर है, अंधेर नहीं है। हर कुर्बानी देकर संवैधानिक मूल्यों की हिफाजत करता रहूंगा।
भारत सरकार की नजर में मुख्य धारा की सियासत होती क्या है। जातीय और धार्मिक उन्माद फैलाना, ऊंच-नीच का भेद रखना, राष्ट्र की संपत्ति को अपने पूंजीपति मित्रों के हाथों औने-पौने दामों पर बेचना, वोट, सत्ता और कुर्सी के लिये हर कुकर्म का हिस्सेदार होना, पल-पल संवैधानिक मूल्यों को रौंदना, लोकतंत्र का माखौल उड़ाना यह कहीं से उचित नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि वैचारिक विरोधियों को जेलों में डालना, फर्जी मुठभेड़ दिखा हत्या करवाना, भ्रष्ट और जातिवादी अधिकारियों की पोस्टिंग! आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी एवं अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध करना यह कहां की परंपरा है।