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कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए मृदा स्वस्थ रखना जरूरी – दीपक

मगध हेडलाइंस: औरंगाबाद। विश्व मृदा दिवस पर शुक्रवार को मिट्टी जांच प्रयोगशाला के द्वारा संयुक्त कृषि भवन में जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया। किसानों को मृदा संरक्षण की जानकारी दी गई। कार्यक्रम का उद्घाटन संयुक्त रूप से सहायक निदेशक उद्यान डॉ श्रीकांत, सहायक निदेशक रसायन दीपक कुमार, अनुमंडल कृषि पदाधिकारी, उप परियोजना निदेशक आत्मा, सहायक निदेशक बीज विश्लेषण प्रयोगशाला, उप निदेशक कृषि अभियंत्रण, सहायक निदेशक बीज उत्पादन, डॉ अनूप कुमार चौबे एवं किसानों ने द्वीप प्रज्वलित कर किया। सहायक निदेशक दीपक कुमार ने बताया कि गुरुवार को विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य के लिए किसानों को जागरूक करना जिससे खेतों किसान संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग करके फसलों का उत्पादन एवं उसकी गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी करें। फसलों के उत्पादन के साथ साथ मृदा स्वास्थ्य को बनाये रखना भी अति आवश्यक है जिससे आने वाले समय में मृदा के उत्पादन क्षमता में कमी न आए एवं उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो l साथ ही कहा कि जिला कृषि मुख्यालय के साथ साथ सभी प्रखण्ड में भी विश्व मृदा दिवस का आयोजन किया गया जिसमे किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड का वितरण किया गया एवं मृदा जांच के आधार पर खेतों पोषक तत्व के प्रयोग करने के बारे में जानकारी दी गई। सहायक निदेशक उद्यान ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आज किसानों को मिट्टी को सुरक्षित रखने के लिए रसायनिक उर्वरक के साथ साथ जैविक खादों का प्रयोग करना आवश्यक है। उप निदेशक कृषि अभियंत्रण ने कहा कि कृषि यंत्रीकरण से किसान फसल अवशेष का प्रबंधन करके मिट्टी के उर्वराशक्ति को बढ़ा सकते है। अनुमंडल कृषि पदाधिकारी राकेश कुमार ने किसानों को मिट्टी जांच कराने के लाभों के बारे में विस्तार से जानकारी दी साथ ही फसल जैविक उर्वरक से बीजों को उपचारित करके ही बुआई करें और संतुलित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करें। डॉ अनूप चौबे ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और मानवजनित गतिविधियों के कारण, असंतुलित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग करने से हमारी मिट्टी का दोहन और क्षरण हो रहा है। जिससे मिट्टी के प्राकृतिक संतुलन को बिगड़ता है। सभी प्रकार के जीव जंतुओं के जीवन के अनाज ही एक एसा खाद्य पदार्थ है जिससे विटामिन और पोषक तत्व हमारे शरीर को प्राप्त होता है। किसान अपने खेतों के कम से कम जुताई करके, फसल चक्र, जैविक उर्वरक को अपनाते हुए और गर्मी के दिनों में खेतो में कवर फसल जैसी संधारणीय मृदा प्रबंधन पद्धतियां को अपना करके मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं। ये पद्धतियां मिट्टी की जैव विविधता को भी संरक्षित करती हैं, उर्वरता में सुधार करती हैं और कार्बन को अलग करने में योगदान देती हैं, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मुकाबले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कार्यक्रम का संचालन संत कुमार ने किया एवं कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आज मिट्टी के स्वास्थ्य में कमी के कारण ही फसलों में कीट और रोग ब्याधी अधिक हो रहा है जिससे फसलों के उत्पादन में कमी आ रहा है। इस कार्यक्रम में जिला मिट्टी जांच प्रयोगशाला कार्यालय के मेघा बधानी, कुमारी मृदुला कृष्णा, चन्द्र प्रताप सिंह, धर्मेन्द्र कुमार एवं 100 से अधिक किसानों ने भाग लिया।

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