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शहीद भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव का संयुक्त शहादत दिवस आज

    – डी के यादव

मगध हेडलाइंस: कोंच(गया) शहीद-ए-आजम वीर भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव का आज संयुक्त शहादत दिवस हर इलाके में मनाया जा रहा है। वे बचपन से ही नटखट, मेघावी व तीव्र बुद्धि के थे। उनके सरदार किशन सिंह (पिता) एवं विद्यावती (माता) थीं। भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। वो कई क्रन्तिकारी संगठनों के साथ मिले और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। भगत सिंह जी की मृत्यु 23 वर्ष की आयु में हुई जब उन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ा दिया। भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां है जो पंजाब, भारत में है। उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजित और स्वरण सिंह जेल में थे। उन्हें 1906 में लागू किये हुए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के जुल्म में जेल में डाल दिया गया था। उनकी माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित रहे।

परिवार से मिले क्रांतिकारी के संस्कार

उनके एक चाचा, सरदार अजित सिंह ने भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की थी। उनके एक मित्र सैयद हैदर रजा ने उनका अच्छा समर्थन किया और चिनाब नहर कॉलोनी बिल के खिलाफ किसानों को आयोजित किया। अजित सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज हो चुके थे जिसके कारण वो ईरान पलायन के लिए मजबूर हो गए। उनके परिवार ग़दर पार्टी के समर्थक थे और इसी कारण से बचपन से ही भगत सिंह के दिल में देश भक्ति की भावना उत्पन्न हो गयी। भगत सिंह ने अपनी 5 वीं तक की पढाई गांव में की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में उनका दाखिला करवाया। बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह आन्दोलन से जुड़ गए और बहुत ही बहादुरी से उन्होंने ब्रिटिश सेना को ललकारा।

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जलियांवाला कांड ने डाला भगत के बाल मन पर प्रभाव

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उनका मन इस अमानवीय कृत्य को देख देश को स्वतंत्र करवाने की सोचने लगा। भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सज़ा सुनाई गई और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया। भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे सुखदेव और राजगुरू के साथ फांसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हंसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।

लेखक भी थे भगत सिंह

भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया।

उनकी मुख्य कृतियां हैं, ‘एक शहीद की जेल नोटबुक, सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज, भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज।

युवाओं के लिए प्रेरणा

शहीद भगत सिंह ने कहा था – देश को एक आमूल परिवर्तन की जरूरत है और जो लोग इस बात को महसूस करते हैं, उनका कर्तव्य है कि साम्यवादी सिद्धांतों पर समाज का पुनर्निमाण करें। जब तक यह नहीं किया जाता और मनुष्य द्वारा मनुष्य का तथा एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण, जो साम्राज्यवादी नाम से विख्यात है, समाप्त नहीं किया जाता, तब तक मानवता को उसके दुखों से छुटकारा मिलना असंभव है और तब तक युद्धों को समाप्त कर विश्व शांति के युग का प्रादुर्भाव करने की सारी बातें महज एक ढोंग के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। भगत सिंह एक गंभीर विचारक व एक शानदार बुद्धिजीवी थे। उन्होंने अपनी 23 वर्ष की अल्पायु में ही राजनीति, ईश्वर, धर्म, भाषा, कला, साहित्य, संस्कृति, प्रेम, सौन्दर्य, आत्महत्या और अनेक दूसरे विषयों पर अधिकारपूर्वक अपने विचार व्यक्त किये थे । उन्होंने भारतीय क्रांतिकारी आन्दोलन की फिजाओं में तीन नारे बुलंद किये थे – इन्कलाब जिन्दाबाद !, सर्वहारा जिन्दाबाद !, साम्राज्यवाद का नाश हो ! पहले नारे के अनुसार – क्रांति तब तक जारी रहेगी जब तक मनुष्य द्वारा मनुष्य का और एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण करने वाली व्यवस्था का खात्मा नहीं हो जाता और इसके स्थान पर एक आदर्श समाज व्यवस्था स्थापित नहीं हो जाती। दूसरा नारा यह ऐलान करता है कि भविष्य कोटि – कोटि मेहनतकश जनता का है और वही क्रांति की मुख्य वाहक शक्ति है।तीसरा नारा फौरी कार्यभार का सूचक है। किसी भी गुलाम राष्ट्र के लिए पहली जरूरत साम्राज्यवादी गुलामी के जुए को उतार फेंकने की होती है। भगत सिंह साम्राज्यवाद के पूरे ढांचे को ही उखाड फेंकने के हामी थे। वे साम्राज्यवाद की बेडियों से केवल भारत की ही नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति की मुक्ति के तरफदार थे। प्रतिक्षण शहीद भगत सिंह और उनके साथियों की कसौटी पर खरी क्रांतिकारी विचारधारा को आम जनता तक पहुंचाना मौजूदा हालात की फौरी जरूरत है और हमारा सबसे महत्वपूर्ण कार्यभार। शहीद भगत सिंह आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनके विचार और आदर्श आज भी लोगों के ज़ेहन में प्रासंगिक है।

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